|| यह परम्परा का प्रवाह है - Yah Parampara Ka Prabhav Hai ||
कोटि चरण बढ़ रहे ध्येय की ओर निरन्तर
यह परम्परा का प्रवाह है, कभी न खण्डित होगा।
पुत्रों के बल पर ही मां का मस्तक मण्डित होगा।
वह कपूत है जिसके रहते मां की दीन दशा हो।
शत भाई का घर उजाड़ता जिसका महल बसा हो।
घर का दीपक व्यर्थ, मातृ-मंदिर में जब अंधियारा।
कैसा हास-विलास कि जब तक बना हुआ बंटवारा?
किस बेटे ने मां के टुकड़े करके दीप जलाए?
किसने भाई की समाधि पर ऊंचे महल बनाए?
|| Atal Bihari Vajpayee Hindi Poem ||
|| Deshbhakti Hindi Poems By Atal Ji ||
चिता भस्म पर किसने सुख के स्वर्णिम साज सजाये,
किसने लाखों के विनाश पर जय के वाद्य बजाये |
किस कपूत ने पूत पंचनद को कर डाला लाल,
किसके पापों का प्रतिफल है भोग रहा बंगाल ||
किसने आग लगाकर अपने घर में किया उजाला,
किसने निज का सुख खरीद माँ का विक्रय कर डाला |
शस्य श्यामला स्वर्णभूमि क्यों हुई आज कंगाल,
किसके कारण देवभूमि में आज अभाव अकाल ||
जगजननी ने भीख मांगने का दुर्दिन क्यों देखा,
पुत्रों के पापों का फल है, यह न नियति का लेखा |
सूर्य घिर गया अंधकार में ठोकर खाकर,
भीख मांगता है कुबेर झोली फैलाकर ||
कण-कण को मोहताज कर्ण का देश हो गया,
माँ का आँचल द्रुपद सुता का केश हो गया |
जब तक अधरों में न भीम की शोणित प्यास जागेगी,
तब तक उर से अपमानों की ज्वाला नहीं बुझेगी ||
|| Patriotic Poems In Hindi ||
|| अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी कविता ||
सबल भुजाओं में रक्षित है नौका की पतवार।
चीर चलें सागर की छाती, पार करें मंझधार।
…ज्ञान-केतु लेकर निकला है विजयी शंकर।
अब न चलेगा ढोंग, दम्भ, मिथ्या आडम्बर।
अब न चलेगा राष्ट्र प्रेम का गर्हित सौदा।
यह अभिनव चाणक्य न फलने देगा विष का पौधा।
तन की शक्ति, हृदय की श्रद्धा, आत्म-तेज की धारा।
आज जगेगा जग-जननी का सोया भाग्य सितारा।
कोटि पुष्प चढ़ रहे देव के शुभ चरणों पर।
कोटि चरण बढ़ रहे ध्येय की ओर निरन्तर।
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