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Auratein - औरतें By रमाशंकर यादव विद्रोही | Women Empowerment Poems

ये एक बात समझने में रात हो गई है - Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai | तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ

ये एक बात समझने में रात हो गई है 
Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai

तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ

ये एक बात समझने में रात हो गई है - Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai | तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ

ये एक बात समझने में रात हो गई है 

मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है 


मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा 

मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है 


बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूँगा सोचा था 

तिरी जुदाई ही वज्ह-ए-नशात हो गई है 


बदन में एक तरफ़ दिन तुलूअ' मैं ने किया 

बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है 


मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर 

ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है 


रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र 

मैं नज़्म लिखने लगा था कि ना'त हो गई है

ये एक बात समझने में रात हो गई है - Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai | तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ

ये एक बात समझने में रात हो गई है 
Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai

तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ


Ye Ek Baat Samajhne Meñ Raat Ho Ga.ī Hai 

Maiñ Us Se Jiit Gayā Huuñ Ki Maat Ho Ga.ī Hai 


Maiñ Ab Ke Saal Parindoñ Kā Din Manā.ūñgā 

Mirī Qarīb Ke Jañgal Se Baat Ho Ga.ī Hai 


Bichhaḍ Ke Tujh Se Na ḳhush Rah Sakūñgā Sochā Thā 

Tirī Judā.ī Hī Vaj.h-e-nashāt Ho Ga.ī Hai 


Badan Meñ Ek Taraf Din Tulūa Maiñ Ne Kiyā 

Badan Ke Dūsre Hisse Meñ Raat Ho Ga.ī Hai 


Maiñ Jañgaloñ Kī Taraf Chal Paḍā Huuñ Chhoḍ Ke Ghar 

Ye Kyā Ki Ghar Kī Udāsī Bhī Saath Ho Gaī Hai 


Rahegā Yaad Madīne Se Vāpsī Kā Safar 

Maiñ Nazm Likhne Lagā Thā Ki Na.at Ho Ga.ī Hai

-

Tehzeeb Hafi

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