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Baat Karne Mujhe Mushkil | बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी - Bahadur Shah Zafar

 Baat Karne Mujhe Mushkil | बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

Bahadur Shah Zafar Hindi Ghazals

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी 

जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी 


ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार 

बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी 


उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू 

कि तबीअ'त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी 


अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया 

ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी 


अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़ 

सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी 


पा-ए-कूबाँ कोई ज़िंदाँ में नया है मजनूँ 

आती आवाज़-ए-सलासिल कभी ऐसी तो न थी 


निगह-ए-यार को अब क्यूँ है तग़ाफ़ुल ऐ दिल 

वो तिरे हाल से ग़ाफ़िल कभी ऐसी तो न थी 


चश्म-ए-क़ातिल मिरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन 

जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी 


क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार 

ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी 

-

बहादुर शाह ज़फर



baat karnī mujhe mushkil kabhī aisī to na thī 

jaisī ab hai tirī mahfil kabhī aisī to na thī 



le gayā chhīn ke kaun aaj tirā sabr o qarār 

be-qarārī tujhe ai dil kabhī aisī to na thī 



us kī āñkhoñ ne ḳhudā jaane kiyā kyā jaadū 

ki tabī.at mirī maa.il kabhī aisī to na thī 



aks-e-ruḳhsār ne kis ke hai tujhe chamkāyā 

taab tujh meñ mah-e-kāmil kabhī aisī to na thī 



ab kī jo rāh-e-mohabbat meñ uThā.ī taklīf 

saḳht hotī hameñ manzil kabhī aisī to na thī 



pā-e-kūbāñ koī zindāñ meñ nayā hai majnūñ 

aatī āvāz-e-salāsil kabhī aisī to na thī 



nigah-e-yār ko ab kyuuñ hai taġhāful ai dil 

vo tire haal se ġhāfil kabhī aisī to na thī 



chashm-e-qātil mirī dushman thī hamesha lekin 

jaisī ab ho ga.ī qātil kabhī aisī to na thī 



kyā sabab tū jo bigaḌtā hai 'zafar' se har baar 

ḳhū tirī hūr-shamā.il kabhī aisī to na thī 



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