सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

New !!

Auratein - औरतें By रमाशंकर यादव विद्रोही | Women Empowerment Poems

मनुष्यता - Manushyata Poem By Maithilisharan Gupt | विचार लो कि मर्त्य हो


मनुष्यता - Manushyata Poem By Maithilisharan Gupt

विचार लो कि मर्त्य हो - Vichaar Lo Ki Martya Ho

मनुष्यता - Manushyata Poem By Maithilisharan Gupt  विचार लो कि मर्त्य हो

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, 

मरो परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी। 

हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए, 

मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए। 

वही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे, 

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥ 


उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती

उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती। 

उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती; 

तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती। 

अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे, 

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥ 

क्षुधार्त रतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी, 

तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी। 

उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया, 

सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर-चर्म भी दिया। 

अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे? 

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥ 


सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; 

वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। 

विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा, 

विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा? 

अहा! वही उदार है परोपकार जो करे, 

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥ 

मनुष्यता - Manushyata Poem By Maithilisharan Gupt  विचार लो कि मर्त्य हो

रहो न भूले के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, 

सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में। 

अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, 

दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं। 

अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे, 

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥ 


अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े, 

समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े। 

परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी, 

रहो न यों कि एक से न काम और का सरे, 

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥ 


‘मनुष्य मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है, 

पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है। 

फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है, 

परंतु अंतरैक्य में प्रणामभूत वेद हैं। 

अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे, 

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥ 

मनुष्यता - Manushyata Poem By Maithilisharan Gupt  विचार लो कि मर्त्य हो

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, 

विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए। 

घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी, 

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी। 

तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे, 

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥ 

-
मनुष्यता - Manushyata Poem By Maithilisharan Gupt | विचार लो कि मर्त्य हो

मनुष्यता - Manushyata Poem By Maithilisharan Gupt

विचार लो कि मर्त्य हो - Vichaar Lo Ki Martya Ho

Famous Poems

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...