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Charkha Lyrics in English: Original, Hinglish, Hindi & Meaning Explained

जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ - Geet Farosh | Ji Haan Huzur, Main Geet Bechta Hun

जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ - Geet Farosh | Ji Haan Huzur, Main Geet Bechta Hun

जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ - Geet Farosh  Ji Haan Huzur, Main Geet Bechta Hun

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।

मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ;

मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ।


जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,

बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा;

कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,

कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने;

यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा;

यह गीत पिया को पास बुलायेगा।


जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को

पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को;

जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान।

जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान।

मैं सोच-समझकर आखिर

अपने गीत बेचता हूँ;

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।


यह गीत सुबह का है, गा कर देखें,

यह गीत ग़ज़ब का है, ढा कर देखे;

यह गीत ज़रा सूने में लिखा था,

यह गीत वहाँ पूने में लिखा था।


यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है

यह गीत बढ़ाये से बढ़ जाता है

यह गीत भूख और प्यास भगाता है

जी, यह मसान में भूख जगाता है;

यह गीत भुवाली की है हवा हुज़ूर

यह गीत तपेदिक की है दवा हुज़ूर।

मैं सीधे-साधे और अटपटे

गीत बेचता हूँ;

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।


जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ - Geet Farosh  Ji Haan Huzur, Main Geet Bechta Hun

जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ

जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ;

जी, छंद और बे-छंद पसंद करें –

जी, अमर गीत और वे जो तुरत मरें।

ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,

मैं पास रखे हूँ क़लम और दावात

इनमें से भाये नहीं, नये लिख दूँ ?


इन दिनों की दुहरा है कवि-धंधा,

हैं दोनों चीज़े व्यस्त, कलम, कंधा।

कुछ घंटे लिखने के, कुछ फेरी के

जी, दाम नहीं लूँगा इस देरी के।


मैं नये पुराने सभी तरह के

गीत बेचता हूँ।

जी हाँ, हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ।



जी गीत जनम का लिखूँ, मरण का लिखूँ;

जी, गीत जीत का लिखूँ, शरण का लिखूँ;

यह गीत रेशमी है, यह खादी का,

यह गीत पित्त का है, यह बादी का।

कुछ और डिजायन भी हैं, ये इल्मी –

यह लीजे चलती चीज़ नयी, फ़िल्मी।


यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत,

यह दुकान से घर जाने का गीत,

जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात

मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात।

तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,

जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत।


जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ

गाहक की मर्ज़ी – अच्छा, जाता हूँ।

मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूँ –

या भीतर जा कर पूछ आइये, आप।

है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप

क्या करूँ मगर लाचार हार कर

गीत बेचता हँ।

जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ।

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जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ - Geet Farosh | Ji Haan Huzur, Main Geet Bechta Hun

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