साहित्यशाला (Sahityashala.in) में आपका स्वागत है। भारतीय संस्कृति और जैन साहित्य में 'दीक्षा' (संन्यास) का स्थान सर्वोपरि माना गया है। जिस प्रकार हिंदी साहित्य में विद्यापति की नचारी में भक्ति का अनूठा संगम मिलता है, उसी प्रकार जैन भजनों में वैराग्य और वात्सल्य का द्वंद्व देखने को मिलता है।
आज हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं माता मोहिनी एवं मैना का संवाद। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सत्य घटना है जो पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की शिष्या, प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी (बचपन का नाम 'मैना') के जीवन पर आधारित है।
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| दीक्षा का क्षण: मैना (भावी आर्यिका चंदनामती माताजी) अपनी माँ से अंतिम आशीर्वाद प्राप्त करते हुए। |
इस संवाद में माँ की ममता और बेटी के अटल वैराग्य का चित्रण है। यह रचना भावनाओं के उस ज्वार को प्रस्तुत करती है जो हमें निर्मल वर्मा के आध्यात्मिक चिंतन या रेणु जी की मानवीय दृष्टि की याद दिलाती है।
भजन की पृष्ठभूमि (Background)
यह संवाद तर्ज़ "बार-बार तोहे क्या समझाऊँ" पर आधारित है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इसका मंचन दर्शकों को भाव-विभोर कर देता है। नीचे दी गई पंक्तियाँ उस क्षण को जीवंत करती हैं जब एक कन्या सांसारिक मोह त्यागकर संयम पथ चुनती है।
माता मोहिनी एवं मैना का संवाद (संपूर्ण लिरिक्स)
तर्ज़- बार-बार तोहे क्या समझाऊँ……
बार-बार समझाऊँ बेटी, मान ले मेरी बात।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।। टेक.।।
भोली भाली माता मेरी, सुन ले मेरी बात।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सके आज।। टेक.।।
तूने तो बेटी अब तक, संसार न कुछ देखा है।
फिर भी मान लिया क्यों इसको, यह सब कुछ धोखा है।
खाने और खेलने के दिन, क्यों करती बर्बाद।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।
प्यारी माँ इस नगर जग में, कुछ भी नया नहीं है।
जो कुछ भोगा सब पद में, बस दिखती कथा वही है।।
ग्रंथों से पाया मैंने, हे माता ज्ञान का स्वाद।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सके आज।।
ये सुनकर रोई मैना, मैं तुझको पहचानूँगी।
अपनी गुड़िया सी पुत्री की, शादी रचाऊँगी।।
सज्जन कर जब बनूँगी दुल्हन, शरमाऊँगी चाँद।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।
तेरी प्यारी बातें में माँ, मैना नहीं आएगी।
सोने चांदी की गहनों को, वह न पहन पाएगी।।
संसार का आलोक घर, मुझे पहचान सिखाए।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सके आज।।
मेरी बात न मान तो अपने, पिता का ख्याल तो करतो।
पुत्रवधू में मान तुझको, उससे कुछ तो समझ तो।
वे नहीं सह पाएंगे तेरे, कठिन त्याग की बात।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।
मैंने अपने पिता का सच्चा, प्रेम अथाह है पाया।
तेरी ममता की मुझे पर तो, सदा रही है छाया।।
फिर भी तू ही समझ सकती है, पिता को सच बता।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सके आज।।
मेरे बस की बात नहीं, मेरे भाई-बहन समझाना।
सब रोकर बोले हैं जीजी, को लेकर ही आना।
तू ही मेरे घर की शान, तू मेरी सौभागा।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।
माँ की बातें कर करके मैं, मुझे न अब भरमाओ।
मेरे भाई-बहनों को अब, प्यार से तुम समझाओ।
माता को बाँधे में उन्हें, जीजी को रहने न द्या।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सके आज।।
मेरी बात न मान तो अपने, पिता का ख्याल तो करतो।
पुत्रवधू में मान तुझको, उससे कुछ तो समझ तो।।
वे नहीं सह पाएंगे तेरे, कठिन त्याग की बात।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।
मैंने अपने पिता का सच्चा, प्रेम अथाह है पाया।
तेरी ममता की मुझे पर तो, सदा रही है छाया।।
फिर भी तू ही समझ सकती है, पिता को सच बता।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सके आज।।
मेरे बस की बात नहीं, तेरे भाई-बहन समझाना।
सब रोकर बोले हैं जीजी, को लेकर ही आना。 तू ही मेरे घर की शान, तू मेरी सौभागा।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।
मोह की बातें कर करके माँ, मुझे न अब भरमाओ।
मेरे भाई-बहनों को अब, प्यार से तुम समझाओ।।
माता की गोद में उन्हें, जीजी को रहने न द्या।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सके आज।।
तेरी वीरागी बातों से, मैं तो पिघल जाती हूँ।
पर तेरे बिन घर कैसे, जाऊँ न समझ पाती हूँ।।
मेरी माँ मुझे छोड़ क्यों, रह गई दिन-रात।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।
माँ मैंने अपने मन में, दृढ़ निश्चय यही किया है।
गृह पिंजरे से उड़ने का, मैंने संकल्प लिया है।।
तू प्यारी माँ देगी आज, मुझे है यह विश्वास।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सके आज।।
आज है पुत्री श्रद्धाभूमि, तेरा जन्मदिवस आया।
आज के दिन देने अपना, यह निर्णय मुझे सुहाया।।
पत्थर दिल करके बेटी मैं, देती आशीष आज।
सुखी रहे मैना मेरी, यह ही है आशीर्वाद।।
(कागज पर स्वीकृति लिखकर मैना को देती है)
जन्म जन्म के पुण्य से मैंने, तुझ जैसी माँ पाई।
तेरे ही संस्कारों की तो, मुझ पर है परछाईं।।
ग्रंथ देख जो मिला तुझसे मैंने सब वह स्वाद।
उस ग्रंथ के अध्ययन ने, मुझको दिया है वैराग।।
तुझे चक्रवर्ती जैसा, मुझे आज समझाया।
बालब्रहमचारी प्रण हो, सफल तेरा यह काय।
युग युग जय पैलेगी तेरा, मुझे है यह विश्वास।
मुझको भी ईर्ष्या देना, गृहबन्धन से निकाला।।
आज ही सच्चा जन्म हुआ है, मेरा मैंने माना।
शब्दब्रह्म का महत्व अब, ठीक से मैंने जाना।।
ब्रहमचर्य सत्यम् प्रतिज्ञा, मैंने किया गृह त्याग।
दीक्षा ग्रहण कर मुझको, असली मिली पहचान।।
जनम जनम जिनके धन्य हुए हैं, शरदपूर्णिमा राता।
संयम के द्वारा उसी, पुण्य को सार्थक बनाता।
जग वालों देखो ही कन्या, जामिनी कहलायी।
उनकी दीक्षा स्वर्ण किरण, सबने देखी मुस्कायी।। सदी बावीस की ये गणिनी, प्रखर हुई विदुष्या।
हम सब उन्हें माता का, पाएँ सदा ही आशीर्वाद।।
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Download PDF Nowइस संवाद का आध्यात्मिक और साहित्यिक महत्व
यह माता मोहिनी एवं मैना का संवाद केवल एक नाटक नहीं, बल्कि जीवन की एक गहरी सच्चाई है। इसमें बताया गया है कि संसार का मोह (Attachment) कितना प्रबल होता है, लेकिन जब 'आत्म-कल्याण' की भावना जागृत होती है, तो बड़े से बड़ा मोह भी टूट जाता है।
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| वैराग्य बनाम मोह: माता मोहिनी और मैना (प्रतीकात्मक चित्र) |
जिस तरह देशभक्ति कविताओं में राष्ट्रप्रेम सर्वोपरि होता है, उसी तरह यहाँ धर्मप्रेम सर्वोपरि है। यह संवाद हमें कन्हैया के भजनों जैसी समर्पण भावना की याद दिलाता है।
मुख्य बिंदु:
- ममता और कर्तव्य: माँ मोहिनी का चरित्र एक सामान्य माँ का प्रतिनिधित्व करता है।
- दृढ़ संकल्प: मैना (चंदनामती माताजी) का चरित्र यह सिखाता है कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए नागार्जुन की कविताओं जैसी जनवादी दृढ़ता आवश्यक है।
- दीक्षा का युग: धर्म पालन के लिए आयु या युग की सीमा नहीं होती।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q: माता मोहिनी और मैना का यह संवाद किस पर आधारित है?
यह संवाद जैन धर्म की सुप्रसिद्ध गणिनी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी (बचपन का नाम मैना) और उनकी माता मोहिनी देवी के बीच, दीक्षा के समय हुए वास्तविक वार्तालाप पर आधारित है।
Q: इस भजन में 'मीना' या 'मैना' कौन है?
इस भजन में 'मीना' या 'मैना' वही बालिका हैं जो आगे चलकर जैन समाज की प्रख्यात विदुषी आर्यिका चंदनामती माताजी बनीं।
निष्कर्ष
साहित्यशाला पर प्रस्तुत माता मोहिनी एवं मैना का संवाद हमें प्रेरणा देता है कि जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्म-कल्याण ही है। यदि आपको यह रचना पसंद आई हो, तो हमारे अन्य ब्लॉग्स जैसे मैथिली कविताएँ, English Literature, और Finance Updates भी अवश्य पढ़ें।

