सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

Gopaldas Neeraj Hindi Poem लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

New !!

मातृभाषा का महोत्सव - Matribhasha Ka Mahatva | Hindi Diwas Par Kavita

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना - Jalao Diye Par Rahe Dhyan Itna | Gopaldas Neeraj Poetry In Hindi

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना - Jalao Diye Par Rahe Dhyan Itna  Gopaldas Neeraj Poetry In Hindi जलाओ दिये पर   रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए नई ज्योति के  धर नये पंख झिलमिल , उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले, लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी , निशा की गली में तिमिर राह भूले , खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग, उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए। जलाओ दिये पर  रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए सृजन है अधूरा  अगर विश्व भर में, कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी, मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बने गी, कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी, चलेगा सदा नाश का खेल यों ही, भले ही दिवाली यहाँ रोज आए। जलाओ दिये पर  रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए मगर दीप की  दीप्ति से सिर्फ़ जग में, नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा , उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के, नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा, कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए जलाओ दिये पर  रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए - Gopaldas Neeraj जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना - Jalao Diye...

Kaarwan Guzar Gya - कारवाँ गुज़र गया | Gopaldas Neeraj Hindi Kavita - गोपालदास नीरज

Kaarwan Guzar Gya - कारवाँ गुज़र गया Gopaldas Neeraj Hindi Kavita स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे! नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई, पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई, चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई, गीत अश्क बन गए, छंद हो दफन गए, साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये, और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे। Gopaldas Neeraj Hindi Kavita क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा, क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा, इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा, थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा, एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली, लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली, और हम लुटे-लुटे, वक्त से पिटे-पिटे, साँस की शराब का खुमार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे। हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ, होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ, दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ, और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी प...

अभी न जाओ प्राण - Abhi Na Jao Praan | Hindi Poem For Class 8 | Class 8 Hindi Poem

अभी न जाओ प्राण - Abhi Na Jao Praan. Hindi Poem For Class 8 | Class 8 Hindi Poem अभी न जाओ  प्राण ! प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है, अभी बरुनियों के  कुञ्जों मैं छितरी छाया, पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया, श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में, अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया, अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया, अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है। अभी न जाओ  प्राण ! प्राण में प्यास शेष है। प्यास शेष है। अभी स्पर्श से  सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण, गल-माला के फूल-फूल में पुलकित कम्पन, खिसक-खिसक जाता उरोज से अभी लाज-पट, अंग-अंग में अभी अनंग-तरंगित-कर्षण, केलि-भवन के तरुण दीप की रूप-शिखा पर, अभी शलभ के जलने का उल्लास शेष है। Hindi Poem For Class 8 | Class 8 Hindi Poem अभी न जाओ  प्राण! प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है। अगरु-गंध में मत्त  कक्ष का कोना-कोना, सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना, अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पट देखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना, रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित- आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है। अभी न जाओ ...

Gopaldas Neeraj Ki Shayariyan - गोपालदास नीरज की शायरियां | Hindi Shayari - हिंदी शायरी

Gopaldas Neeraj Ki Shayariyan - गोपालदास नीरज की शायरियां Hindi Shayari - हिंदी शायरी   (1) मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार (2) भारत माँ के नयन दो हिन्दू-मुस्लिम जान नहीं एक के बिना हो दूजे की पहचान (3) बिना दबाये रस न दें ज्यों नींबू और आम दबे बिना पूरे न हों त्यों सरकारी काम (4) अमरीका में मिल गया जब से उन्हें प्रवेश उनको भाता है नहीं अपना भारत देश (5) जब तक कुर्सी जमे खालू और दुखराम तब तक भ्रष्टाचार को कैसे मिले विराम (6) पहले चारा चर गये अब खायेंगे देश कुर्सी पर डाकू जमे धर नेता का भेष (7) कवियों की और चोर की गति है एक समान दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान (8) गो मैं हूँ मँझधार में आज बिना पतवार लेकिन कितनों को किया मैंने सागर पार (9) जब हो चारों ही तरफ घोर घना अँधियार ऐसे में खद्योत भी पाते हैं सत्कार (10) जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल (11) भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म (12) दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन (13) गागर में सागर भर...

मैंने बस चलना सीखा है - Maine Bas Chalna Sikhaa Hai | Gopaldas Neeraj Hindi Poem

मैंने बस चलना सीखा है - Maine Bas Chalna Sikhaa Hai Gopaldas Neeraj Hindi Poem  मैंने बस चलना सीखा है। कितने ही कटुतम काँटे तुम मेरे पथ पर आज बिछाओ, और भी चाहे निष्ठुर कर का भी धुँधला दीप बुझाओ, किन्तु नहीं मेरे पग ने पथ पर बढ़कर फिरना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। कहीं छुपा दो मंज़िल मेरी चारों और तिमिर-घन छाकर, चाहे उसे राख का डालो नभ से अंगारे बरसा कर, पर मानव ने तो पग के नीचे मंज़िल रखना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। कब तक ठहर सकेंगे मेरे सम्मुख ये तूफान भयंकर, कब तक मुझ से लड़ पावेगा इन्द्र-राज का वज्र प्रखरतर, मानव की ही अस्थिमात्र से वज्रों ने बनना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। देखूँ कौन बनेगा नीचा मेरा उन्नत अमर भाल यह, इतना ही है मुझे मिला दे मिट्टी में बस क्रूर काल वह, पर इस जग की मिट्टी ने भी देवों पर चढ़ना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। - गोपालदास नीरज

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...