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Kaarwan Guzar Gya - कारवाँ गुज़र गया | Gopaldas Neeraj Hindi Kavita - गोपालदास नीरज

Kaarwan Guzar Gya - कारवाँ गुज़र गया

Gopaldas Neeraj Hindi Kavita


स्वप्न झरे फूल से,

मीत चुभे शूल से,

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

Kaarwan Guzar Gya - कारवाँ गुज़र गया  Gopaldas Neeraj Hindi Kavita

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,

पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,

पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई,

चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,

गीत अश्क बन गए,

छंद हो दफन गए,

साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये,

और हम झुके-झुके,

मोड़ पर रुके-रुके

उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

Gopaldas Neeraj Hindi Kavita


क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,

क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,

इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,

थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,

एक दिन मगर यहाँ,

ऐसी कुछ हवा चली,

लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली,

और हम लुटे-लुटे,

वक्त से पिटे-पिटे,

साँस की शराब का खुमार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

Kaarwan Guzar Gya - कारवाँ गुज़र गया  Gopaldas Neeraj Hindi Kavita

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,

होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,

दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,

और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,

हो सका न कुछ मगर,

शाम बन गई सहर,

वह उठी लहर कि दह गये किले बिखर-बिखर,

और हम डरे-डरे,

नीर नयन में भरे,

ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!


Gopaldas Neeraj Hindi Kavita


माँग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,

ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,

शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,

गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,

पर तभी ज़हर भरी,

गाज एक वह गिरी,

पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,

और हम अजानसे,

दूर के मकान से,

पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

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Gopaldas Neeraj

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