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हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार | Har Ghadi Chasm-E-Khareedar - Shakeel Azmi Ki Ghazal

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार | Har Ghadi Chasm-E-Khareedar

Shakeel Azmi Ki Ghazal

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए 

कुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने के लिए 

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार  Har Ghadi Chasm-E-Khareedar - Shakeel Azmi Ki Ghazal

मैं ने देखा है जो मर्दों की तरह रहते थे 

मस्ख़रे बन गए दरबार में रहने के लिए 


ऐसी मजबूरी नहीं है कि चलूँ पैदल मैं 

ख़ुद को गर्माता हूँ रफ़्तार में रहने के लिए 


अब तो बदनामी से शोहरत का वो रिश्ता है कि लोग 

नंगे हो जाते हैं अख़बार में रहने के लिए 

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शकील आज़मी

Paro Ko Khol Zamana Udaan Dekhta Hai - परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है | शकील आज़मी

har ghaḌī chashm-e-ḳharīdār meñ rahne ke liye

kuchh hunar chāhiye bāzār meñ rahne ke liye

maiñ ne dekhā hai jo mardoñ tarah rahte the

masḳhare ban ga.e darbār meñ rahne ke liye

aisī majbūrī nahīñ hai ki chalūñ paidal maiñ

ḳhud ko garmātā huuñ raftār meñ rahne ke liye

ab to badnāmī se shohrat vo rishta hai ki log

nañge ho jaate haiñ aḳhbār meñ rahne ke liye

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महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

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सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

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Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...

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