Kameeshan Do To Hindustan Ko Nelaam Kar Denge - कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे | अदम गोंडवी
हिंदी ग़ज़ल को कोठों और महबूब की गलियों से निकालकर संसद की चौखट और गाँव की पगडंडियों पर लाने वाले बेबाक शायर अदम गोंडवी (Adam Gondvi) की यह रचना आज के दौर में और भी प्रासंगिक हो गई है। जब सियासत और भ्रष्टाचार का गठजोड़ देश की नींव को खोखला करने लगता है, तब अदम गोंडवी के शब्द आग बनकर बरसते हैं।
उनकी यह मशहूर ग़ज़ल "जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे" राजनीतिक पतन और व्यवस्था पर एक करारा तमाचा है।
Jo Dalhousie Na Kar Paya (Lyrics)
जो डलहौज़ी न कर पाया...
जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे,
कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे।
ये वंदेमातरम् का गीत गाते हैं सुबह उठकर,
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगना दाम कर देंगे।
सदन को घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे,
अगली योजना में घूसख़ोरी आम कर देंगे।
सुरा व सुंदरी के शौक़ में डूबे हुए रहबर,
दिल्ली को रंगीलेशाह का हम्माम कर देंगे।
उधर सीमाओं पर तनाव है, क्या होगा भगवान,
ये सुलह के कबूतर तो बहुत आराम कर देंगे।
हवस के पुतले हैं, ये क्या करेंगे देश की सेवा,
ये अपने तोते-मैना के ही नाम अपनी शाम कर देंगे।
- अदम गोंडवी
ग़ज़ल का भावार्थ (Explanation)
इस रचना में अदम गोंडवी ने भारतीय राजनीति के गिरते स्तर को उजागर किया है:
- ऐतिहासिक कटाक्ष: शायर लॉर्ड डलहौज़ी (Lord Dalhousie) का उदाहरण देते हैं, जिसने अपनी नीतियों से भारत को लूटा था। गोंडवी कहते हैं कि आज के शासक (हुक्काम) उससे भी दो कदम आगे हैं। अगर उन्हें 'कमीशन' (घूस) मिले, तो वे पूरे देश को बेचने (नीलाम करने) से भी नहीं हिचकेंगे।
- पाखंड पर प्रहार: जो नेता सुबह उठकर देशभक्ति का दिखावा करते हुए 'वंदे मातरम' गाते हैं, वही शाम होते-होते जमाखोरी और महंगाई बढ़ाकर आम जनता की कमर तोड़ देते हैं।
- संसद और भ्रष्टाचार: 'रंगीलेशाह का हम्माम' कहकर उन्होंने दिल्ली की सत्ता के गलियारों में चल रही विलासिता और अय्याशी की तुलना मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला के दौर से की है।
कौन थे अदम गोंडवी? (About Adam Gondvi)
अदम गोंडवी (मूल नाम: रामनाथ सिंह) हिंदी ग़ज़ल के दुष्यंत कुमार के बाद सबसे सशक्त हस्ताक्षर माने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के रहने वाले अदम ने अपनी शायरी में शोषित, वंचित और गरीब तबके की आवाज़ उठाई। उनकी शायरी में बनावटीपन नहीं, बल्कि गांव की मिट्टी की सौंधी महक और व्यवस्था के खिलाफ सुलगती आग है।
निष्कर्ष (Conclusion)
"कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे" महज एक कविता नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। अदम गोंडवी के जाने के बरसों बाद भी यह पंक्तियाँ आज की राजनीतिक परिस्थितियों पर सटीक बैठती हैं। यह हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि हम किसे अपना 'रहबर' (नेता) चुन रहे हैं।