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तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो - Tum Itna Jo Muskura Rahe Ho | Kaifi Azmi

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो - Tum Itna Jo Muskura Rahe Ho

Kaifi Azmi - कैफ़ी आज़मी

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो - Tum Itna Jo Muskura Rahe Ho  Kaifi Azmi

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो


आँखों में नमी हँसी लबों पर

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो


बन जाएँगे ज़हर पीते पीते

ये अश्क जो पीते जा रहे हो


जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है

तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो


रेखाओं का खेल है मुक़द्दर

रेखाओं से मात खा रहे हो

Explore Kaifi Azmi's soulful poetry 'Tum Itna Jo Muskura Rahe Ho,' a timeless ode to hidden emotions. Dive deep into its heartfelt meaning and beauty.

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो - Tum Itna Jo Muskura Rahe Ho | Kaifi Azmi 

tum itnā jo muskurā rahe ho

kyā ġham hai jis ko chhupā rahe ho


āñkhoñ meñ namī hañsī laboñ par

kyā haal hai kyā dikhā rahe ho

ban jā.eñge zahr piite piite

ye ashk jo piite jā rahe ho


jin zaḳhmoñ ko vaqt bhar chalā hai

tum kyuuñ unheñ chheḌe jā rahe ho


rekhāoñ kā khel hai muqaddar

rekhāoñ se maat khā rahe ho

-

कैफ़ी आज़मी




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