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Auratein - औरतें By रमाशंकर यादव विद्रोही | Women Empowerment Poems

Maa Par Hindi Kavita | Mother's Day Poems In Hindi | जननी है

 

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MOTHER POEMS

जननी है

हमारी भाषा हिंदी ,जननी है,

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माँ पर कविता

मैय्या तु ईश्वर का रूप अनूप

हे मैय्या तु ईश्वर का रूप अनूप
हो गर्मी में छाँव सर्दी में धूप
ममता दया प्रेम करुणा है खूब
यही है जननी तेरा वास्तविक स्वरुप

जननी है तु जग में सबसे प्यारी
गाये तेरी महिमा दुनिया सारी
तेरे ही आँचल की छाँव में माता
बचपन बनता है यौवन
करना संतान को सुख समर्पित
होता है तेरा जीवन

हिमालय जैसा गौरव तेरा
तु ही लाये नित नया सवेरा
हृदय में तुम्हारे प्रेम की नदियाँ
अविरल बह रही बीती सदियाँ

कभी ना हटी ममता में पीछे
ईश्वर का दर्जा भी तेरे नीचे
क्योकि ईश्वर को भी तुने जन्म दिया
तेरे सीने से लग स्तनपान किया

हर युग में तेरी महिमा निराली
संतान की रक्षा के खातिर
बनी तु गौरी, बनी तु काली
बड़ी अलौकिक बड़ी ही न्यारी
तेरी छवि सदा रही रब से प्यारी

तेरा हर देवी में वास है
देव भी करे तुझ पे विश्वास है
करता रहेगा तेरा वंदन
तब तक यह संसार
जब तक प्रेम इस जहां में
और जीवित है संसार


जनक-जननी और जाया


जन्म लिया जब धरा पे तुमने, जननी ने जग दिखलाया

ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलाया


वे भूखे पेट सोए होंगे, पेट तुम्हारा भरने को

रात-रात भर जागे होंगे, सपने पूरे करने को।

देव तुल्य हैं चरणों में उनके, सचमुच स्वर्ग समाया

ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलायाय़


कड़वे शब्दों के न करना, दिल पर उनके वार कभी

और न करना जीवन में है, उन पर अत्याचार कभी।

क्योंकि वे तो सदा चाहते, सुखी रहे उनका जाया

ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलाया।


यदि बन श्रवण माँ बाप की सेवा तुम कर जाओगे

ईश्वर की भी कृपा रहेगी, सुखमय जीवन पाओगे। 

रही सदा है मात-पिता की, शुभ आशीषों की छाया

ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलाया।

Maa Par Hindi Kavita | Mother's Day Poems In Hindi | जननी है

मूक पशु भी इंसानों के काम हमेशा आते हैं

मरने के उपरान्त बहुत कुछ दुनिया को दे जाते हैं।

शत्-शत् नमन करो उनको, जिसने इंसान बनाया

ऊँगली थाम नेह से तुमको जनक ने चलना सिखलाया।


जननी जन्मभूमि

मैं माँ को बहुत प्यार करता था
कभी अपने मुँह से नहीं कहा मैंने।
टिफ़िन के पैसे बचाकर
कभी-कभी ख़रीद लाता था सन्तरे
लेटे-लेटे माँ की आँखें डबडबा जाती थीं
अपने प्यार की बात
कभी भी मुँह खोलकर मैं माँ से नहीं कह सका।
हे देश, हे मेरी जननी
मैं तुमसे कैसे कहूँ!
जिस धरती पर पैरों के बल खड़ा हुआ हूँ -
मेरे दोनों हाथों की दसों उँगलियों में
उसकी स्मृति है।
मैं जिन चीज़ों को छूता हूँ
वहाँ पर हे जननी तुम्हीं हो
मेरी हृदय-वीणा तुम्हारे ही हाथों बजती है।
हे जननी! हम डरे नहीं
जिन लोगों ने तुम्हारी ज़मीन पर
अपने क्रूर पंजे पसारे हैं
हम उनकी गर्दन पकड़कर
सरहद के पार खदेड़ देंगे।
हम जीवन को अपनी तरह से सजा रहे थे --
सजाते रहेंगे।
हे जननी! हम डरे नहीं
यज्ञ में बाधा पड़ी थी इसलिए नाराज़ हैं हम
हे जननी
मुंह से बिना कुछ कहे
हम अनथके हाथों से
प्यार की बातें कह जाएंगे।

Maa Par Hindi Kavita | Mother's Day Poems In Hindi | जननी है


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