आओ रानी हम ढोएंगे पालकी - नागार्जुन की कविता | Aao Rani Hum Dhoyenge Palki Poem
यहाँ प्रस्तुत है जन-कवि बाबा नागार्जुन की एक कालजयी और सुप्रसिद्ध व्यंग्य कविता, "आओ रानी हम ढोएंगे पालकी"। यह कविता 1961 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के भारत आगमन के विशेष अवसर पर लिखी गई थी।
उस समय, बाबा नागार्जुन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा शाही स्वागत के लिए की जा रही भव्य तैयारियों और आम जनता की गरीबी के बीच के गहरे अंतर को देखा। इसी विरोधाभास पर उन्होंने अपनी लेखनी से यह तीखा कटाक्ष किया। यह कविता आज भी सत्ता और जनता के बीच की दूरी पर एक प्रासंगिक टिप्पणी बनी हुई है।
पढ़िए, नागार्जुन की बेबाक कलम से निकला यह अद्भुत व्यंग्य...
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की |
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की,
यही हुई है राय जवाहरलाल की ||
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!
आओ शाही बैण्ड बजायें,
आओ बन्दनवार सजायें |
खुशियों में डूबे उतरायें,
आओ तुमको सैर करायें ||
उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी |
तुम मुस्कान लुटाती आओ,
तुम वरदान लुटाती जाओ ||
आओ जी चाँदी के पथ पर,
आओ जी कंचन के रथ पर |
नज़र बिछी है, एक-एक दिक्पाल की,
छ्टा दिखाओ गति की लय की ताल की ||
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
सैनिक तुम्हें सलामी देंगे |
लोग-बाग बलि-बलि जायेंगे,
दॄग-दॄग में खुशियां छ्लकेंगी ||
ओसों में दूबें झलकेंगी,
प्रणति मिलेगी नये राष्ट्र के भाल की |
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!
बेबस-बेसुध, सूखे-रुखडे़,
हम ठहरे तिनकों के टुकडे़ |
टहनी हो तुम भारी-भरकम डाल की,
खोज खबर तो लो,
अपने भक्तों के खास महाल की ||
लो कपूर की लपट,
आरती लो सोने की थाल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी ||
भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो,
प्रेसिडेन्ट की लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो |
पद्म-भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उद्गार लो,
पार्लमेण्ट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो ||
मिनिस्टरों से शेकहैण्ड लो, जनता से जयकार लो,
दायें-बायें खड़े हज़ारी आफ़िसरों से प्यार लो |
धनकुबेर उत्सुक दिखेंगे, उनको ज़रा दुलार लो,
होंठों को कम्पित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो ||
बिजली की यह दीपमालिका फिर-फिर इसे निहार लो,
यह तो नयी-नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो ||
एक बात कह दूँ मलका, थोड़ी-सी लाज उधार लो,
बापू को मत छेड़ो, अपने पुरखों से उपहार लो
जय ! ब्रिटेन की जय हो ! इस कलिकाल की!
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की |
यही हुई है राय जवाहरलाल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !!
😁
"आओ रानी हम ढोएंगे पालकी" बाबा नागार्जुन की निर्भीक और फक्कड़ शख्सियत का एक ज्वलंत प्रमाण है। यह कविता दर्शाती है कि एक सच्चा 'जनकवि' सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति (चाहे वह स्वयं पंडित नेहरू ही क्यों न हों) की जन-विरोधी लगने वाली नीतियों पर प्रश्न उठाने से कभी नहीं हिचकता।
यह व्यंग्य कविता (Satirical Poem) केवल एक रचना नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जो हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र में आम जनता की आवाज़ का क्या महत्व है।
आपको यह कविता और इसका विश्लेषण कैसा लगा? अपनी राय नीचे कमेंट्स में ज़रूर बताएँ।
लेखक परिचय: बाबा नागार्जुन
बाबा नागार्जुन (1911-1998), जिनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था, को 'जनकवि' (जनता का कवि) के रूप में जाना जाता है। बिहार के दरभंगा (वर्तमान मधुबनी) जिले के तरौनी गाँव में जन्मे नागार्जुन ने हिंदी, मैथिली और संस्कृत में विपुल साहित्य की रचना की।
वे अपनी प्रगतिशील विचारधारा, फक्कड़ स्वभाव और सत्ता के प्रति तीखे व्यंग्य के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने 'यात्री' उपनाम से मैथिली में भी लेखन किया। उनकी कविताएँ सीधे आम आदमी के दुखों, संघर्षों और उनकी आकांक्षाओं से जुड़ती हैं।
'पत्रहीन नग्न गाछ' (मैथिली कविता-संग्रह) के लिए उन्हें 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बाबा नागार्जुन आधुनिक हिंदी-मैथिली काव्य के एक ऐसे स्तम्भ हैं, जिन्हें उनकी बेबाकी और जन-प्रतिबद्धता के लिए सदैव याद किया जाएगा।



