तुम चाहत हौ भाईचारा, उल्लू हौ - Tum Chahat Ho Bhaichara, Ullu Hao
रफ़ीक शादानी | Rafeek Shadani
रफ़ीक शादानी (Rafeek Shadani) जी अवधी और हिंदी साहित्य के एक प्रमुख व्यंग्यकार कवि हैं। उनकी कविताएं समाज की विसंगतियों पर सीधा और तीखा प्रहार करती हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध और चर्चित कविताओं में से एक है 'उल्लू हौ' (Ullu Hau Kavita)।
यह 'उल्लू हो कविता' (Ullu Ho Kavita) अपनी सरल अवधी भाषा और गहरे कटाक्ष के लिए जानी जाती है। इसमें कवि 'तुम चाहत हौ भाईचारा, उल्लू हौ' कहकर आज के समय की कड़वी सच्चाइयों और पाखंड को बेबाकी से उजागर करते हैं।
तुम चाहत हौ भाईचारा?
उल्लू हौ।
देखै लाग्यौ दिनै मा तारा?
उल्लू हौ।
समय कै समझौ यार इशारा
उल्लू हौ,
तुमहू मारौ हाथ करारा
उल्लू हौ।
दहेज़ में मारुती पायौ ख़ुशी भयी
दुल्हिन पायौ महा खटारा
उल्लू हौ।
कैसे अन्तर पास कियो बस जान गायिन
कहे इक्यासी लिखे अठारह
उल्लू हौ।
कट्टरपंथी जाल से हम तो भाग लिहेन
तुम हौ हो जाओ नौ दू ग्यारह
उल्लू हौ।
जवान बीवी छोड़ के दुबई भागत हौ?
जैसे तैसे करौ गुजारा
उल्लू हौ।
भीड़ में घुस के झगड़ा देखा चाहत हौ
दूरे से बस करो नज़ारा
उल्लू हौ।
कहत रहेन ना फँसौ प्यार के चक्कर मा
झुराय के होइ गयेव छोहारा
उल्लू हौ।
डिगिरी लैके बेटा दर दर भटकौ ना,
हवा भरौ बेँचौ गुब्बारा
उल्लू हौ।
इनका उनका रफीक का गोहरावत हौ?
जब उ चहिहैं मिले किनारा
उल्लू हौ|
रफ़ीक शादानी की यह कविता 'उल्लू हौ' (Ullu Hau) महज़ एक हास्य कविता नहीं, बल्कि एक गहरा सामाजिक आईना है। कवि ने 'उल्लू हौ' शब्द का इस्तेमाल एक लाक्षणिक प्रहार के रूप में किया है, जो हमें अपनी और समाज की नादानियों पर रुककर सोचने को मजबूर करता है।
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