यह कदंब का पेड़: भावार्थ, विश्लेषण और प्रश्न-उत्तर
सुभद्रा कुमारी चौहान | Subhadra Kumari Chauhan
प्रस्तावना: हिंदी साहित्य में बाल-मनोविज्ञान और वात्सल्य रस की जब भी बात होती है, 'यह कदंब का पेड़' (Yeh Kadamb Ka Ped) का नाम सबसे पहले आता है। सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित यह कविता केवल एक बाल-गीत नहीं है, बल्कि यह माँ और बेटे के बीच के उस पवित्र बंधन का चित्रण है, जिसमें नटखटपन भी है और समर्पण भी।
यदि आप हिंदी प्रकृति कविताओं (Hindi Nature Poems) के प्रेमी हैं, तो यह रचना आपको अपने बचपन की यादों और यमुना के तीरे ले जाएगी।
मूल कविता: यह कदंब का पेड़
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊंचे पर चढ़ जाता॥
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता॥
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
तब माँ, माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता॥
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| कविता में बच्चा 'कन्हैया' बनकर अपनी माँ के साथ वही लुका-छिपी खेलना चाहता है, जो बाल-कृष्ण और मैया यशोदा के बीच खेली जाती थी। |
तुम आँचल फैलाकर अम्मा वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मींचे॥
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता॥
तुम घबराकर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जातीं।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं॥
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे॥
कविता का भावार्थ और विश्लेषण (Meaning & Analysis)
यह कविता बाल सुलभ कल्पनाओं का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें कवयित्री ने एक बच्चे की इच्छा को व्यक्त किया है जो श्री कृष्ण की तरह बनना चाहता है।
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| कविता की पंक्तियाँ "मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे" बचपन की इसी निश्छल शरारत और उत्साह को दर्शाती हैं। |
- बाल-हठ और कल्पना: बच्चा अपनी माँ से कहता है कि अगर घर के पास यमुना नदी होती और यह कदंब का पेड़ वहाँ होता, तो वह उस पर चढ़कर कन्हैया (कृष्ण) बन जाता। यह पंक्तियाँ बच्चों की उस मासूमियत को दर्शाती हैं जहाँ वे अपने नायकों का अनुकरण करना चाहते हैं।
- माँ का वात्सल्य (Motherly Love): कविता का सबसे भावुक हिस्सा वह है जब बच्चा माँ को परेशान करने का नाटक करता है। माँ का 'विकल' (बेचैन) हो जाना और ईश्वर से प्रार्थना करना, भारतीय माँ के त्याग और प्रेम का प्रतीक है।
- प्रकृति से जुड़ाव: जैसा कि हम अन्य प्रसिद्ध कवियों की नेचर पोम्स में देखते हैं, यहाँ भी 'कदंब का वृक्ष' केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि खेल का साथी है।
⚠️ क्या यह आशुतोष राणा की कविता है? (Is this by Ashutosh Rana?)
अक्सर इंटरनेट पर लोग "Kadamb Ka Ped by Ashutosh Rana" सर्च करते हैं। यह एक सामान्य भ्रांति है।
सच्चाई यह है: यह कविता मूल रूप से सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई है। प्रसिद्ध अभिनेता आशुतोष राणा, जो अपनी ओजस्वी वाणी और साहित्य प्रेम के लिए जाने जाते हैं, अक्सर मंचों पर हिंदी कविताओं का पाठ करते हैं। उनके द्वारा रश्मिरथी या अन्य कविताओं के पाठ के कारण, कई बार श्रोता गलती से इस कविता को भी उनकी रचना समझ बैठते हैं। लेकिन इसका श्रेय केवल सुभद्रा जी को जाता है।
कवयित्री परिचय: सुभद्रा कुमारी चौहान
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: 'यह कदंब का पेड़' कविता का केंद्रीय भाव (Central Idea) क्या है?
उत्तर: इस कविता का केंद्रीय भाव 'बाल-सुलभ क्रीड़ा' और 'मातृ-प्रेम' है। बच्चा कृष्ण बनकर माँ के साथ लुका-छिपी खेलना चाहता है, जो वात्सल्य रस का सुंदर उदाहरण है।
प्रश्न 2: कदंब का पेड़ किस भगवान से संबंधित है?
उत्तर: कदंब का वृक्ष भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बाल कृष्ण वृंदावन में यमुना किनारे इसी पेड़ पर चढ़कर बांसुरी बजाया करते थे और गोपियों के साथ लीलाएँ करते थे।
प्रश्न 3: क्या यह कविता कक्षा के पाठ्यक्रम में है?
उत्तर: जी हाँ, यह कविता अक्सर CBSE और विभिन्न राज्य बोर्डों की हिंदी पाठ्यपुस्तकों (जैसे कक्षा 5 या 6) में सम्मिलित की जाती है ताकि बच्चों को साहित्य और संस्कृति से जोड़ा जा सके।
प्रश्न 4: कविता में बच्चा माँ को कैसे बुलाता है?
उत्तर: बच्चा बांसुरी बजाकर और 'अम्मा-अम्मा' कहकर वंशी के स्वर में अपनी माँ को बुलाने की कल्पना करता है।
प्रश्न 5: सुभद्रा कुमारी चौहान की अन्य प्रसिद्ध कविताएँ कौन सी हैं?
उत्तर: उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता 'झाँसी की रानी' (बुंदेले हरबोलों के मुँह...) है। इसके अलावा 'वीरों का कैसा हो वसंत' और 'पिंजरे की चिड़िया' (संदर्भित) जैसी रचनाएँ भी लोकप्रिय हैं।
क्या आप इस कविता को प्रोजेक्ट या पढ़ाई के लिए सेव करना चाहते हैं?
📄 Download Poem PDFनिष्कर्ष: 'यह कदंब का पेड़' हमें भागदौड़ भरी जिंदगी में एक पल रुककर अपने बचपन और माँ के प्यार को याद करने का अवसर देती है। साहित्यशाला पर हम ऐसी ही उत्कृष्ट हिंदी कविताओं का संग्रह आपके लिए लाते रहते हैं।


