खाली होता जाता हूँ | Khaali Hota Jaata Hun
ये आँसू बहते क्यों नहीं
क्यों नहीं मैं रो पाता हूँ ?
अंदर क्यों इतना खाली हूँ ?
क्यों खाली होता जाता हूँ ?
ये डर नहीं, फिर है क्या ?
ये बिना चोट का दर्द है
जो जज़्बा दिल में खत्म हुआ
शायद उसी का सर्द है ।
किस पर मैं करूँ क्रोध भला
किसको गलत ठहराऊँ मैं ?
क्यों नहीं मैं रो पाता हूँ
क्यों ख़ुद को तड़पाऊँ मैं ?
हर बार मैं जीत के भी
हार ही क्यों जाता हूँ ?
अंदर क्यों इतना खाली हूँ ?
क्यों खाली होता जाता हूँ ?
किस पर करूँ भरोसा मैं ?
जब भरोसा ख़ुद में खो रहा हूँ
किससे आँसू छिपाऊँ जब
बिन आँसू के रो रहा हूँ ?
मुझको सब गलत क्यों लगता है ?
मैं अब किससे डरता हूँ ?
कैसी मेरी ये जीत है?
मैं तो हर पल मरता हूँ ।
किस दिन आँसू बहाऊँगा मैं ?
किस दिन फिर रो पाऊँगा ?
अंदर क्यों इतना खाली हूँ ?
क्यों खाली होता जाता हूँ ?
-