दीपावली (Diwali) केवल दीपों का त्यौहार नहीं, बल्कि दिलों को रोशन करने का पर्व है। जहाँ एक ओर हम दीपावली (Wikipedia) पर अपने घरों को सजाते हैं, वहीं समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जिसके लिए यह त्यौहार भी आम दिनों जैसा ही संघर्षमय होता है।
यह कविता 'मन से मन का दीप जलाओ' समाज की इसी कड़वी सच्चाई को बयां करती है। जिस तरह शोहरत का नशा इंसान को अंधा कर देता है (जैसा कि आपने हमारी पोस्ट 'अभी ये दौलत नयी नयी है' में पढ़ा होगा), उसी तरह अमीरी की चमक में हमें गरीबों का अंधेरा नहीं दिखता।
आज की यह प्रस्तुति न केवल एक कविता है, बल्कि एक सामाजिक सन्देश है। छात्रों के लिए (School Recitation) और मंच संचालन (Anchoring) के लिए यह एक बेहतरीन रचना है।
मन से मन का दीप जलाओ
(Best Diwali Poem in Hindi - Deepawali Kavita)
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| Deepawali Ki Hardik Shubhkamnayein |
धनियों के घर बंदनवार सजती
निर्धन के घर लक्ष्मी न ठहरती
मन से मन का दीप जलाओ
घृणा-द्वेष को मिल दूर भगाओ
घर-घर जगमग दीप जलते
नफरत के तम फिर भी न छंटते
जगमग-जगमग मनती दिवाली
गरीबों की दिखती है चौखट खाली
खूब धूम धड़काके पटाखे चटखते
आकाश में जा ऊपर राकेट फूटते
काहे की कैसी मन पाए दिवाली
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| Heart Touching Diwali Poetry |
अंटी हो जिसकी पैसे से खाली
गरीब की कैसे मनेगी दीवाली
खाने को जब हो कवल रोटी खाली
दीप अपनी बोली खुद लगाते
गरीबी से हमेशा दूर भाग जाते
अमीरों की दहलीज सजाते
फिर कैसे मना पाए गरीब दिवाली
दीपक भी जा बैठे हैं बहुमंजिलों पर
वहीं झिलमिलाती हैं रोशनियां
पटाखे पहचानने लगे हैं धनवानों को
वही फूटा करती आतिशबाजियां
यदि एक निर्धन का भर दे जो पेट
सबसे अच्छी मनती उसकी दिवाली
हजारों दीप जगमगा जाएंगे जग में
भूखे नंगों को यदि रोटी वस्त्र मिलेंगे
दुआओं से सारे जहां को महकाएंगे
आत्मा को नव आलोक से भर देगें
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| मन से मन का दीप जलाओ - Diwali Kavita |
फुटपाथों पर पड़े रोज ही सड़ते हैं
सजाते जिंदगी की वलियां रोज है
कौन-सा दीप हो जाए गुम न पता
दिन होने पर सोच विवश हो जाते
दीपावली की शुभकामनाएं..!
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निष्कर्ष (Conclusion)
दोस्तों, यह कविता हमें सिखाती है कि असली खुशियाँ बांटने में हैं। अगर यह रचना आपके दिल को छू गई हो, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर शेयर करें। साहित्यशाला का उद्देश्य ही समाज के हर पहलू को आप तक पहुँचाना है।
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