यह घर, इसका बरामदा, इसमें दो खिड़कियाँ - Yeh Ghar, Iska Baramda, Isme Do Khidkiyan | By Suhani Dogra
यह घर, इसका बरामदा, इसमें दो खिड़कियाँ
Yeh Ghar, Iska Baramda, Isme Do Khidkiyan
यह घर,
इसका बरामदा,
इसमें दो खिड़कियाँ,
और इन खिड़कियों से झाँकता मेरा हृदय,
बिन पलक झपकाए,
देखता है हर चलते राहगीर को,
इस इंतजार में कि कब तुम दस्तख दोगे मेरे देहलीज पर।।
मेरे अंगने का दरवाजा सदैव तुम्हारे इंतजार में खुला रहा ,
पर तुम्हारी हाज़री नहीं लगी,
दिल आँखों से पूछता रहा
और मन दिल से।
हार गए सब,
अब सिर्फ जीत रहा है,
तो तुम्हारा दिया हुआ घाव,
उस घाव से निरंतर बहता खून,
और आंखों से तेजाब से वो आँसू,
गिरते तो मुख जल-भुन उठता।।
सोचती हूँ,
यह दरवाजा अब बंद कर,
इसमें ताला लगा दूँ,
आखिर तुम्हें भी तो मालूम पड़े,
कि कितना कष्ट है,
वापस किसी की दस्तख़ में आना
और उसके दरवाजे से अंदर आ
उस मरहम को लगाना,
और घर के हर एक कमरे की मरम्मत करना।।
सोचती हूँ,
कि तुम्हें एक मौका और दूंगी, जब तुम आओगे,
पर,
क्या तुम इस मौके के मोहताज हो ?
क्या तुम कभी फिर से मेरे दरवाज़े पर दस्तख दे,
मेरा नाम फिर एक बार पुकारोगे?
क्या तुम मेरे घाव का खून रोक पाओगे?
क्या तुम मेरे इस दरवाजे को कभी खोल पाओगे?
ठीक है! ठीक है!
आ जाना।
आओगे तो खाली हाथ मत आना,
मुट्ठी भर हमारे पहले मिलन वाली ज़मीन की मिट्टी ला,
बस मेरे दस्तख में रख वापस चले जाना ,
एक प्याले में वह शरबत लाना जो तुमने फूलों के रस से बनाकर
मुझे पिलाया और मेरे सूखे कंठ को अमृत-सा अमर कर दिया,
शायद हमारे प्रेम को अमर करना तुम भूल गए ।
अपने बस्ते में वो किताबें लाना जिसमें तुम्हारे-मेरे प्रेम के ढेरों पत्र हैं,
उन पत्रों को वापस तुम्हारे घर में डाक द्वारा भिजवा दूँगी,
शायद तब तुम्हें मेरा नाम याद आ जाये,
और याद आ जाएँ भूलें हुए हर वो एक पल,
जो तुमने बांधे थे मेरे घर की दीवार के खूंटे से,
जिसमें सीलन आ गयी है,
बस केवल एक बार मरम्मत करनी बाकी है।
अपने जेब में एक कलम लाना,
तुम्हें प्रेम के ढ़ाई अक्षर लिखना सिखाएँगे,
ताकि तुम अब ये जान लो कि आखिर प्रेम है क्या ?
और फिर से यह न कह पाओ कि
"मुझे तुमसे प्रेम नहीं।"
-
Suhani Dogra
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