Love Poems In Hindi | Ishq Hindi Kavita
जब पुराने ख़तों को...
जब पुराने ख़तों को
खोला था मैंने
कुछ झूठें लब्ज़ों को
तौला था मैंने
उम्मीदों की जब थी
चादर हटाई
एक अरसे बाद, आँखों से
बोला था मैंने |
रोया नहीं, पर
ख़ुद पर हँसा था
देखा वहाँ
गर्द-ए-वफ़ा जमा था
फिर दिखा मुझे
उस कागज़ पर वादा
जिस कागज़ पर
मुझे सदा गुमाँ था |
क्यों उन खतों में हैं
डूबने की चाहत ?
मिलती क्यों नहीं
कुछ ज़ख्मों से राहत ?
क्यों फिर खड़ा हूँ
उसी मोड़ पर मैं
जहाँ पर हुआ था
कल ही मैं आहत |
दिया था दोस्ती
का उसने सहारा
मैं बस जहाँ में
उससे था हारा
माँगी हर माफ़ी
जो उसको न खोऊँ
राह खोकर राही
है होता आवारा |
उसका भी हक़ था उन खतों पर भी उतना मैंने उसको दिल से चाहा था जितना मुझे देख ख़ुदा भी तब रोया होगा पूछ लो उसी से मैं रोया था कितना |
क्यों उन खतों की
स्याही फिर फैली ?
क्यों उन्हें किताबों में
मैं हर बार छिपाऊँ ?
क्यों न उनको मैं
जला फिर से पाया ?
क्यों उन्हें ख़ुद को
मैं हर रोज़ दिखाऊँ ?
तब तरस गईं थीं
आँखें मेरी
पर पहली चिट्ठी तेरी
आयी नहीं
'खैरियत है सब'
बस ये पूछ लेते
बस तेरी ये बात
मुझे भायी नहीं
बस तेरी ये बात
मुझे भायी नहीं |
-
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वफ़ा
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Ishq Urdu Shayari
Ishq Hindi Shayari
चोट देते हो
कहते हो माफ़ करिये
हमको न ऐसे
यूँ याद करिये
अहल-ए-वफ़ा की
तो कीमत बहुत है
ख़ुदा से न मेरी
फ़रियाद करिये।
है आँखों में पानी
यह दर्द-ए-वफ़ा है
ये ग़म की हँसी है
या दिल कुछ ख़फ़ा है
जिसको था चाहा
था माँगा ख़ुदा से
मोहब्बत मेरी
हाँ! बेवफ़ा है ।
पुराने खतों को
संभाले रखा है
लम्हों को दिल से
लगाए रखा है
तेरे इश्क़ पर
मुझे इतना यकीन था
उन झूठे वादों
को सजाए रखा है ।
सिमटते-सिमटते
बिखर गए हम
छिपाते-छिपाते
बिछड़ गए हम
हम ने तो हर पल
था जोड़ा ये रिश्ता
ये वक़्त क्या बीता
गुज़र गए हम ।
इस ग़म-ए-वफ़ा में
हम फिर क्यों रोएँ ?
तेरी यादों में
हर दिन क्यों सोएँ ?
तुमसे तो हम ने
बस दिल था लगाया
अब रुकते न आँसू
कैसे न रोएँ ?
अंजाम-ए-वफ़ा का
है दर्द मुझको
इश्क़ है ये कैसा ?
गुनहगार तुम हो
क्यों झूठे आँसू ?
है क्यों झूठी सिसकी ?
इस बहते झोंके में
अब तुम ही गुम हो।
जब मिले मुझ-सा
वफ़ादार कोई
हो इश्क़ फिर से
मिले प्यार कोई
आँखों पे अब कोई
फिर से फ़िदा हो
करे फिर से तुझसे
इज़हार कोई ।
यादों में ग़म का
ना आँसू बहाना
नए इश्क़ को, हाँ !
फिर से सजाना
अगर अब तू रूठा
तब हम ना होंगे
आ जाए क़यामत
बस तुम न आना |
-
हर्ष नाथ झा
चोट देते हो
कहते हो माफ़ करिये
हमको न ऐसे
यूँ याद करिये
अहल-ए-वफ़ा की
तो कीमत बहुत है
ख़ुदा से न मेरी
फ़रियाद करिये।
है आँखों में पानी
यह दर्द-ए-वफ़ा है
ये ग़म की हँसी है
या दिल कुछ ख़फ़ा है
जिसको था चाहा
था माँगा ख़ुदा से
मोहब्बत मेरी
हाँ! बेवफ़ा है ।
पुराने खतों को
संभाले रखा है
लम्हों को दिल से
लगाए रखा है
तेरे इश्क़ पर
मुझे इतना यकीन था
उन झूठे वादों
को सजाए रखा है ।
सिमटते-सिमटते
बिखर गए हम
छिपाते-छिपाते
बिछड़ गए हम
हम ने तो हर पल
था जोड़ा ये रिश्ता
ये वक़्त क्या बीता
गुज़र गए हम ।
इस ग़म-ए-वफ़ा में
हम फिर क्यों रोएँ ?
तेरी यादों में
हर दिन क्यों सोएँ ?
तुमसे तो हम ने
बस दिल था लगाया
अब रुकते न आँसू
कैसे न रोएँ ?
अंजाम-ए-वफ़ा का
है दर्द मुझको
इश्क़ है ये कैसा ?
गुनहगार तुम हो
क्यों झूठे आँसू ?
है क्यों झूठी सिसकी ?
इस बहते झोंके में
अब तुम ही गुम हो।
जब मिले मुझ-सा
वफ़ादार कोई
हो इश्क़ फिर से
मिले प्यार कोई
आँखों पे अब कोई
फिर से फ़िदा हो
करे फिर से तुझसे
इज़हार कोई ।
यादों में ग़म का
ना आँसू बहाना
नए इश्क़ को, हाँ !
फिर से सजाना
अगर अब तू रूठा
तब हम ना होंगे
आ जाए क़यामत
बस तुम न आना |
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हर्ष नाथ झा