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ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा - Zindagi Yun Hui Basar Tanhaa | Gulzar Sahab Ghazal

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा - Zindagi Yun Hui Basar Tanhaa

Gulzar Sahab Ghazal

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा 

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा - Zindagi Yun Hui Basar Tanhaa  Gulzar Sahab Ghazal\

अपने साए से चौंक जाते हैं 

उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा 


रात भर बातें करते हैं तारे 

रात काटे कोई किधर तन्हा 


डूबने वाले पार जा उतरे 

नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा 


दिन गुज़रता नहीं है लोगों में 

रात होती नहीं बसर तन्हा 


हम ने दरवाज़े तक तो देखा था 

फिर न जाने गए किधर तन्हा 

-

गुलज़ार

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा - Zindagi Yun Hui Basar Tanhaa | Gulzar Sahab Ghazal

Gulzar Sahab Ghazal


zindagi yun hui basar tanhaa

qaafila saath aur safar tanhaa

apne saaye se chaunk jaate hain

umr guzri hai is qadar tanhaa


raat bhar baatein karte hain taare

raat kaate koi kidhar tanhaa


doobne waale paar ja utre

naqsh-e-paa apne chhod kar tanhaa


din guzarta nahin hai logon mein

raat hoti nahin basar tanhaa

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा - Zindagi Yun Hui Basar Tanhaa | Gulzar Sahab Ghazal

ham ne darwaaze tak to dekha tha

phir na jaane gaye kidhar tanhaa


ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा - Zindagi Yun Hui Basar Tanhaa | Gulzar Sahab Ghazal


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Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...

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