उर्दू शायरी में कैफ़ी आज़मी (Kaifi Azmi) का नाम उन चंद शायरों में लिया जाता है जिन्होंने अपनी कलम से न केवल इश्क़ और रोमांस को बयां किया, बल्कि समाज और प्रकृति के दर्द को भी उतनी ही शिद्दत से उकेरा।
उनकी ग़ज़ल "शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा" शहरीकरण (Urbanization) और प्रकृति के विनाश पर एक गहरा कटाक्ष है। यह रचना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि विकास की अंधी दौड़ में हमने क्या खो दिया है।
आज साहित्यशाला पर हम इस कालजयी ग़ज़ल के बोल और इसके गहरे अर्थ को समझेंगे।
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| शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा - प्रकृति और शहरीकरण का द्वंद्व |
शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा
शायर: कैफ़ी आज़मी
शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा
बानी-ए-जश्न-ए-बहाराँ ने ये सोचा भी नहीं
किस ने काँटों को लहू अपना पिलाया होगा
बिजली के तार पे बैठा हुआ हँसता पंछी
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा
अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे
हर सराब उन को समुंदर नज़र आया होगा
भावार्थ और विश्लेषण (Analysis)
कैफ़ी आज़मी की यह ग़ज़ल एक चेतावनी है। "शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा" यह पंक्ति संकेत देती है कि जब मनुष्य प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है, तो प्रकृति भी अपना विरोध दर्ज कराती है। परिंदों का शोर जंगल में किसी बाहरी (शहरी) खतरे के आने का संकेत है।
शायर आगे कहते हैं, "पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था...", जो यह दर्शाता है कि हम विकास के नाम पर अपने ही विनाश का इंतज़ाम कर रहे हैं। पेड़ काटकर हम छांव और ऑक्सीजन दोनों खो रहे हैं।
यह भाव उनके अन्य गीतों में भी झलकता है। यदि आपको यह ग़ज़ल पसंद आई, तो उनकी प्रसिद्ध रचना "झुकी झुकी सी नज़र" और "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो" ज़रूर पढ़ें, जो मानवीय भावनाओं की गहराई को छूती हैं।
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निष्कर्ष
कैफ़ी आज़मी की यह ग़ज़ल सिर्फ शायरी नहीं, बल्कि एक आईना है जो हमें हमारी 'तरक्की' की असली कीमत दिखाता है। अगर आप साहित्य के साथ-साथ वित्त प्रबंधन में भी रुचि रखते हैं, तो Sovereign Gold Bonds पर हमारा लेख ज़रूर पढ़ें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
'शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा' किसकी रचना है?
यह मशहूर शायर और गीतकार कैफ़ी आज़मी की रचना है।
इस ग़ज़ल का मुख्य विषय क्या है?
यह ग़ज़ल शहरीकरण, वनों की कटाई और प्रकृति से मनुष्य के टूटते रिश्ते पर एक मार्मिक टिप्पणी है।