कुशल दौनेरिया की ग़ज़ल "कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए" की गहराई में - Kuch Aise Raaston Se Ishq Ka Safar jaye
इश्क़, हिज्र और नौजवान नसल का दर्द: कुशल दौनेरिया की ग़ज़ल "कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए" की गहराई में
नई दिल्ली: आज की तेज़-रफ़्तार ज़िन्दगी में जहां हर कोई किसी न किसी दौड़ में शामिल है, इश्क़ और हिज्र (विरह) की बातें अक्सर पुरानी और दकियानूसी लगती हैं। लेकिन, युवा शायर कुशल दौनेरिया अपनी ग़ज़ल "कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए" के ज़रिए आज की पीढ़ी के उन्हीं दबे हुए एहसासों को ज़ुबान देते हैं, जिन्हें अक्सर अनसुना कर दिया जाता है। यह ग़ज़ल न केवल इश्क़ की पेचीदगियों को बयां करती है, बल्कि आज के नौजवानों के अकेलेपन और उनकी भावनात्मक उथल-पुथल का भी एक आईना है।
साहित्यशाला.इन पर आज हम कुशल दौनेरिया की इसी ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल की गहराई में उतरेंगे, इसके हर शेर का मतलब समझेंगे और जानेंगे कि क्यों यह रचना आज के युवाओं के बीच इतनी मकबूल हो रही है।
कुशल दौनेरिया: आज की आवाज़ का एक उभरता शायर
इससे पहले कि हम ग़ज़ल के सफ़र पर निकलें, यह जानना ज़रूरी है कि इसके रचयिता कौन हैं। कुशल दौनेरिया दिल्ली के एक युवा और प्रतिभाशाली शायर हैं, जिन्होंने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उनकी शायरी में आज के दौर की सच्चाई, इश्क़ का एक नया नज़रिया और मानवीय रिश्तों की जटिलताएँ साफ़ झलकती हैं। वे अपनी सीधी-सादी लेकिन गहरी बात कहने की कला से हज़ारों युवाओं के दिलों में जगह बना चुके हैं।
ग़ज़ल: कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए
यहाँ हम कुशल दौनेरिया की पूरी ग़ज़ल आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि आप इसके हर लफ़्ज़ के जादू को महसूस कर सकें।
कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए
तुम्हारा हिज्र बहुत दूर से गुज़र जाए
उदासियों से भरी कच्ची उम्र की ये नस्ल
जो शायरी न करे तो दुखों से मर जाए
पचास लोगों से वो रोज़ मिलती है और मैं
किसी को देख लूँ तो उस का मुँह उतर जाए
घटा छटे तो दिखे चाँद भी सितारे भी
जो तुम हटो तो किसी और पर नज़र जाए
हज़ार साल में तय्यार होने वाला मर्द
उस एक गोद में सर रखते ही बिखर जाए
मैं उस बदन से सभी पैरहन उतारूँ और
अंधेरा जिस्म पे कपड़े का काम कर जाए
मेरी हवस को कोई दूसरा मयस्सर हो
तुम्हारा हुस्न किसी और से सँवर जाए
-
Roman Transliteration of the Ghazal
For our readers who are more comfortable with the Roman script, here is the transliteration:
Kuch aise raaston se ishq ka safar jaaye Tumhara hijr bahut door se guzar jaaye
Udaasiyon se bhari kachchi umr ki ye nasl Jo shaayari na kare to dukhon se mar jaaye
Pachaas logon se wo roz milti hai aur main Kisi ko dekh loon to us ka munh utar jaaye
Ghata chhate to dikhe chaand bhi sitaare bhi Jo tum hato to kisi aur par nazar jaaye
Hazaar saal mein tayyar hone waala mard Us ek god mein sar rakhte hi bikhar jaaye
Main us badan se sabhi pairahan utaaroon aur Andhera jism pe kapde ka kaam kar jaaye
Meri hawas ko koi doosra mayassar ho Tumhara husn kisi aur se sanwar jaaye
English Translation of the Ghazal
Here is an attempt to capture the essence of this beautiful ghazal in English:
May the journey of love traverse such paths, That the sorrow of your separation passes from a great distance.
This generation of tender age, filled with melancholy, Would die of its sorrows if it did not turn to poetry.
She meets fifty people every day, and I, If I even look at someone, her face falls.
When the clouds clear, the moon and stars are visible, If you move aside, my gaze might fall on someone else.
A man who takes a thousand years to become strong, Shatters in an instant upon resting his head in that one lap.
May I remove all the garments from that body, And may the darkness act as clothing on the skin.
May my desires find someone else, And may your beauty be adorned by another.
ग़ज़ल का विश्लेषण और हर शेर का भावार्थ
यह ग़ज़ल अपने सात अश'आर (शेरों) में इश्क़, हिज्र, आज की पीढ़ी की मानसिकता और मानवीय कमजोरियों की कई परतें खोलती है।
पहला शेर:
कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए तुम्हारा हिज्र बहुत दूर से गुज़र जाए
शायर अपने इश्क़ के सफ़र के लिए एक ऐसी दुआ कर रहा है जो बहुत गहरी है। वह यह नहीं कह रहा कि उसे अपनी महबूबा मिल जाए, बल्कि वह चाहता है कि इश्क़ का यह सफ़र ऐसे रास्तों से गुज़रे जहाँ जुदाई का दुख उसे छू भी न पाए, बहुत दूर से ही निकल जाए। इसमें एक डर भी है और एक उम्मीद भी।
दूसरा शेर:
उदासियों से भरी कच्ची उम्र की ये नस्ल जो शायरी न करे तो दुखों से मर जाए
यह शेर आज की पीढ़ी का एक कड़वा सच बयान करता है। सोशल मीडिया और दिखावे की इस दुनिया में नौजवान अंदर से कितने अकेले और उदास हैं, यह शेर उसकी एक झलक देता है। शायरी या किसी भी कला का सहारा ही उन्हें अपने दुखों से लड़ने की हिम्मत देता है, वरना यह अकेलापन जानलेवा हो सकता है।
तीसरा शेर:
पचास लोगों से वो रोज़ मिलती है और मैं किसी को देख लूँ तो उस का मुँह उतर जाए
इस शेर में शायर आज के रिश्तों में मौजूद असुरक्षा और अधिकार की भावना को बड़ी ख़ूबसूरती से दिखाता है। उसकी महबूबा का सामाजिक दायरा बहुत बड़ा है, लेकिन वह इतना संवेदनशील है कि अगर वह किसी और को देख भी ले तो उसकी महबूबा को नागवार गुज़रता है।
चौथा शेर:
घटा छटे तो दिखे चाँद भी सितारे भी जो तुम हटो तो किसी और पर नज़र जाए
यह एक क्लासिक शेर है जिसमें महबूबा की अहमियत को चाँद-सितारों से भी ऊपर रखा गया है। शायर कहता है कि जैसे बादलों के हटने से आसमान साफ़ होता है और चाँद-सितारे नज़र आते हैं, वैसे ही अगर उसकी महबूबा उसकी नज़रों के सामने से हट जाए, तभी वह किसी और के बारे में सोच भी सकता है।
पाँचवाँ शेर:
हज़ार साल में तय्यार होने वाला मर्द उस एक गोद में सर रखते ही बिखर जाए
इस शेर में मर्द की भावनात्मक दुनिया का एक बहुत ही नाज़ुक पहलू दिखाया गया है। समाज एक मर्द को मज़बूत और कठोर बनाता है, जिसमें हज़ारों साल का वक़्त लगता है, लेकिन अपनी महबूबा की गोद में सर रखते ही वह अपनी सारी दुनिया, सारा दर्द और सारी कमज़ोरियाँ ज़ाहिर कर देता है और एक बच्चे की तरह बिखर जाता है।
छठा और सातवाँ शेर:
मैं उस बदन से सभी पैरहन उतारूँ और अंधेरा जिस्म पे कपड़े का काम कर जाए
मेरी हवस को कोई दूसरा मयस्सर हो तुम्हारा हुस्न किसी और से सँवर जाए
ग़ज़ल के आख़िरी दो शेर बहुत ही साहसी और आज के दौर के हैं। इनमें शायर सामाजिक बंधनों से परे जाकर अपने इश्क़ और अपनी इच्छाओं की बात करता है। वह एक ऐसी स्थिति की कल्पना करता है जहाँ दोनों एक दूसरे से आज़ाद हों, अपनी-अपनी ज़िन्दगी जिएं, लेकिन शायद उनका इश्क़ फिर भी बना रहे। यह आज के "ओपन रिलेशनशिप" जैसे विचारों की एक झलक देता है, लेकिन शायरी के अपने अंदाज़ में।
निष्कर्ष: क्यों यह ग़ज़ल एक उच्च कोटि की रचना है?
कुशल दौनेरिया की यह ग़ज़ल केवल शब्दों का एक सुंदर मेल नहीं है, बल्कि यह आज के समाज का एक गहरा मनोवैज्ञानिक अध्ययन है। यह हमें बताती है कि इश्क़ का मतलब सिर्फ़ पा लेना नहीं है, बल्कि इसमें डर, असुरक्षा, अकेलापन और आज़ादी की ख़्वाहिश जैसी कई जटिल भावनाएँ भी शामिल हैं। "साहित्यशाला.इन" पर हमारा मानना है कि ऐसी रचनाएँ ही साहित्य को ज़िंदा रखती हैं और नई पीढ़ी को अपनी भाषा और अपनी भावनाओं से जोड़े रखती हैं।
आपको यह ग़ज़ल कैसी लगी? हमें नीचे कमेंट्स में ज़रूर बताएँ। और ऐसी ही बेहतरीन शायरी और साहित्य के लिए "साहित्यशाला.इन" से जुड़े रहें।
काफ़िर हूँ सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए - Kafir Hun Sar-Phira Hun Mujhe Mar Dijiye