क्यों उस रात गलती मेरी थी? समाज के मुँह पर तमाचा है उषा कुमारी की यह मार्मिक कविता | Kyon Uss Raat Galti Meri Thi
क्यों उस रात गलती मेरी थी? समाज के मुँह पर तमाचा है उषा कुमारी की यह मार्मिक कविता
उस रात... - उषा कुमारी
साहित्य की दुनिया में कुछ रचनाएँ सिर्फ़ शब्द नहीं होतीं, बल्कि समाज की कड़वी सच्चाइयों का आईना होती हैं। कवयित्री उषा कुमारी जी की यह कविता 'उस रात' एक ऐसी ही दिल को दहला देने वाली रचना है, जो हमारे समाज की उस मानसिकता पर गहरा प्रहार करती है जहाँ हर बार दोष लड़की का ही माना जाता है। यह कविता उस हर पीड़िता की अनकही आवाज़ है, जो इंसाफ़ की तलाश में ख़ुद ही दोषी ठहरा दी जाती है।
आइये, इन शब्दों में छिपे दर्द और सच्चाई को महसूस करें।
उस रात...
उस रात गलती मेरी थी
बेटी बनकर पैदा हुई इस धरती पर वो गलती मेरी थी
उस रात कपड़े मैंने पूरे पहने थे
वो गलती मेरी थी उस कमरे में मैं अकेली थी
मैंने ही कुछ कहा होगा
क्योंकि उस रात गलती मेरी थी
मैंने ही अपने जिस्म को बचाने की कोशिश नहीं की होगी
क्योंकि उस रात गलती मेरी थी
कपड़े फटे मेरे, जिस्म पर चोटें लगी मुझे,
क्योंकि उस रात गलती मेरी थी
इंसाफ मांगा मिला नहीं
क्योंकि उस रात गलती मेरी थी
अब मैं लड़ नहीं सकती, कुछ कर नहीं सकती
ये दुनिया अपंग है, बेजान है,
कुछ सुन और कर नहीं सकती
क्योंकि उस रात गलती मेरी थी.....।
कविता का सार: समाज से कुछ चुभते सवाल
उषा कुमारी जी की यह मार्मिक हिंदी कविता महज़ एक रचना नहीं, बल्कि एक चीख़ है। यह कविता उन तमाम सवालों को जन्म देती है जिन्हें हमारा समाज अक्सर नज़रअंदाज़ कर देता है। कवयित्री ने व्यंग्यात्मक लहजे में हर उस आरोप को स्वीकार किया है जो एक पीड़िता पर लगाया जाता है - उसका बेटी होना, उसका अकेले होना, उसके कपड़ों से लेकर उसके आत्मसम्मान तक।
यह दर्द भरी कविता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कब तक समाज अपनी गलतियों का बोझ महिलाओं के कन्धों पर डालता रहेगा? यह रचना स्त्री विमर्श और सामाजिक सच्चाई का एक ज्वलंत उदाहरण है जो न्याय की धीमी और अक्सर अंधी प्रक्रिया पर भी सवाल उठाती है।