प्रस्तावना: धर्म, भूख और विद्रोह का स्वर
हिंदी जनवादी कविता के इतिहास में रमाशंकर यादव 'विद्रोही' की यह कविता, जिसे अक्सर 'धर्म' या 'मेरे गाँव में लोहा लगते ही' के नाम से जाना जाता है, एक ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह है। यह कविता महज शब्दों का जमावड़ा नहीं है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण समाज में व्याप्त सामंतवाद, धार्मिक पाखंड और जातिगत शोषण की जड़ों पर एक कुदाल की चोट है।
आज साहित्यशाला में हम इस कालजयी रचना का पाठ करेंगे और समझेंगे कि कैसे एक 'घंटा' बजते ही गरीब की थाली से भोजन गायब हो जाता है।
वीडियो: रमाशंकर विद्रोही की कविता 'धर्म' का पाठ
कविता (हिंदी): मेरे गाँव में लोहा लगते ही
मेरे गाँव में लोहा लगते ही
टनटना उठता है सदियों पुराने पीतल का घंट,
चुप हो जाते हैं जातों के गीत,
ख़ामोश हो जाती हैं आँगन बुहारती चूड़ियाँ,
अभी नहीं बना होता है धान, चावल,
हाथों से फिसल जाते हैं मूसल
और बेटे से छिपाया घी,
उधार का गुड़,
मेहमानों का अरवा,
चढ़ जाता है शंकर जी के लिंग पर।
एक शंख बजता है और
औढरदानी का बूढ़ा गण
एक डिबिया सिंदूर में
बना देता है
विधवाओं से लेकर कुँवारियों तक को सुहागन।
नहीं ख़त्म होता लुटिया भर गंगाजल,
बेबाक़ हो जाते हैं फटे हुए आँचल,
और कई गाँठों में कसी हुई चवन्नियाँ।
मैं उनकी बात नहीं करता जो
पीपलों पर घड़ियाल बजाते हैं
या बन जाते हैं नींव का पत्थर,
जिनकी हथेलियों पर टिका हुआ है
सदियों से ये लिंग,
ऐसे लिंग थापकों की माएँ
खीर खाके बच्चे जनती हैं
और खड़ी कर देती हैं नरपुंगवों की पूरी ज़मात
मर्यादा पुरुषोत्तमों के वंशज
उजाड़ कर फेंक देते हैं शंबूकों का गाँव
और जब नहीं चलता इससे भी काम
तो धर्म के मुताबिक़
काट लेते हैं एकलव्यों का अँगूठा
और बना देते हैं उनके ही ख़िलाफ़
तमाम झूठी दस्तख़तें।
धर्म आख़िर धर्म होता है
जो सूअरों को भगवान बना देता है,
चढ़ा देता है नागों के फन पर
गायों का थन,
धर्म की आज्ञा है कि लोग दबा रखें नाक
और महसूस करें कि भगवान गंदे में भी
गमकता है।
जिसने भी किया है संदेह
लग जाता है उसके पीछे जयंत वाला बाण,
और एक समझौते के तहत
हर अदालत बंद कर लेती है दरवाज़ा।
अदालतों के फ़ैसले आदमी नहीं
पुरानी पोथियाँ करती हैं,
जिनमें दर्ज है पहले से ही
लंबे कुर्ते और छोटी-छोटी क़मीज़ों
की दंड व्यवस्था।
तमाम छोटी-छोटी
थैलियों को उलटकर,
मेरे गाँव में हर नवरात्र को
होता है महायज्ञ,
सुलग उठते हैं गोरु के गोबर से
निकाले दानों के साथ
तमाम हाथ,
नीम पर टाँग दिया जाता है
लाल हिंडोल।
लेकिन भगवती को तो पसंद होती है
ख़ाली तसलों की खनक,
बुझे हुए चूल्हे में ओढ़कर
फूटा हुआ तवा
मज़े से सो रहती है,
ख़ाली पतीलियों में डाल कर पाँव,
आँगन में सिसकती रहती हैं
टूटी चारपाइयाँ,
चौरे पे फूल आती हैं
लाल-लाल सोहारियाँ,
माया की माया,
दिखा देती है भरवाकर
बिना डोर के छलनी में पानी।
जिन्हें लाल सोहारियाँ नसीब हों
वे देवता होते हैं
और देवियाँ उनके घरों में पानी भरती हैं।
लग्न की रातों में
कुँआरियों के कंठ पर
चढ़ जाता है एक लाल पाँव वाला
स्वर्णिम खड़ाऊँ,
और एक मरा हुआ राजकुमार
बन जाता है सारे देश का दामाद
जिसको कानून के मुताबिक़
दे दिया जाता है सीताओं की ख़रीद-फरोख़्त
का लाइसेंस।
सीताएँ सफ़ेद दाढ़ियों में बाँध दी जाती हैं
और धरम कि किताबों में
घासें गर्भवती हो जाती हैं।
धरम देश से बड़ा है।
उससे भी बड़ा है धरम का निर्माता
जिसके कमज़ोर बाजुओं की रक्षा में
तराशकर गिरा देते हैं
पुरानी पोथियों में लिखे हुए हथियार
तमाम चट्टान तोड़ती छोटी-छोटी बाँहें,
क्योंकि बाम्हन का बेटा
बूढ़े चमार के बलिदान पर जीता है।
भूसुरों के गाँव में सारे बाशिंदे
किराएदार होते हैं
ऊसरों की तोड़ती आत्माएँ
नरक में ढकेल दी जाती हैं
टूटती ज़मीनें गदरा कर दक्षिणा बन जाती हैं,
क्योंकि
जिनकी माताओं ने कभी पिसुआ ही नहीं पिया
उनके नाम भूपति, महीपत, श्रीपत नहीं हो सकते,
उनके नाम
सिर्फ़ बीपत हो सकते हैं।
धरम के मुताबिक़ उनको मिल सकता है
वैतरणी का रिज़र्वेशन,
बशर्ते कि संकल्प दें अपनी बूढ़ी गाय
और खोज लाएँ सवा रुपया क़र्ज़,
ताकि गाय को घोड़ी बनाया जा सके।
किसान की गाय
पुरोहित की घोड़ी होती है।
और सबेरे ही सबेरे
जब ग्वालिनों की माल पर
बोलियाँ लगती हैं,
तमाम काले-काले पत्थर
दूध की बाल्टियों में छपकोरियाँ मारते हैं,
और तब तक रात को ही भींगी
जाँघिए की उमस से
आँखें को तरोताज़ा करते हुए चरवाहे
खोल देते हैं ढोरों की मुद्धियाँ।
एक बाणी गाय का एक लोंदा गोबर
गाँव को हल्दीघाटी बना देता है,
जिस पर टूट जाती हैं जाने
कितनी टोकरियाँ,
कच्ची रह जाती हैं ढेर सारी रोटियाँ,
जाने कब से चला आ रहा है
रोज़ का ये नया महाभारत
असल में हर महाभारत एक
नए महाभारत की गुंजाइश पे रुकता है,
जहाँ पर अंधों की जगह अवैधों की
जय बोल दी जाती है।
फाड़कर फेंक दी जाती हैं उन सबकी
अर्जियाँ
जो विधाता की मेड़ तोड़ते हैं।
सुनता हूँ एक आदमी का कान फांदकर
निकला था,
जिसके एवज़ में इसके बाप ने इसको कुछ हथियार दिए थे,
ये आदमी जेल की कोठरी के साथ
तैर गया था दरिया,
घोड़ों की पूँछें झाड़ते-झाड़ते
तराशकर गिरा दिया था राजवंशों का गौरव।
धर्म की भीख, ईमान की गर्दन होती है मेरे दोस्त!
जिसको काट कर पोख्ता किये गए थे
सिंहासनों के पाये,
सदियाँ बीत जाती हैं,
सिंहासन टूट जाते हैं,
लेकिन बाकी रह जाती है खून की शिनाख़्त,
गवाहियाँ बेमानी बन जाती हैं
और मेरा गाँव सदियों की जोत से वंचित हो जाता है
क्योंकि कागज़ात बताते हैं कि
विवादित भूमि राम-जानकी की थी।
Hinglish Text (Roman)
Mere gaon mein loha lagte hi
Tantana uthta hai sadiyon purane peetal ka ghant,
Chup ho jaate hain jaaton ke geet,
Khamosh ho jaati hain aangan buhaarti churiyan,
Abhi nahi bana hota hai dhaan, chawal,
Haathon se phisal jaate hain moosal
Aur bete se chipaya ghee,
Udhaar ka gud,
Mehmaanon ka arwa,
Chadh jaata hai Shankar ji ke ling par.
Ek shankh bajta hai aur
Audhardani ka boodha gan
Ek dibiya sindoor mein
Bana deta hai
Vidhwaon se lekar kunwariyon tak ko suhagan.
Nahi khatm hota lutiya bhar gangajal,
Bebaak ho jaate hain phate hue aanchal,
Aur kai gaanthon mein kasi hui chavanniyan.
Main unki baat nahi karta jo
Peeplon par ghariyal bajate hain
Ya ban jaate hain neev ka patthar,
Jinki hatheliyon par tika hua hai
Sadiyon se ye ling,
Aise ling thaapkon ki maayein
Kheer khaake bachche janti hain
Aur khadi kar deti hain narpungavon ki poori jamaat
Maryada purushottamon ke vanshaj
Ujaad kar phek dete hain Shambookon ka gaon
Aur jab nahi chalta isse bhi kaam
To dharm ke mutaabik
Kaat lete hain Eklavyon ka angootha
Aur bana dete hain unke hi khilaaf
Tamaam jhoothi dastkhatien.
Dharm aakhir dharm hota hai
Jo suaron ko bhagwan bana deta hai,
Chadha deta hai naagon ke phan par
Gayon ka than,
Dharm ki aagya hai ki log daba rakhein naak
Aur mehsoos karein ki bhagwan gande mein bhi
Gamakta hai.
Jisne bhi kiya hai sandeh
Lag jaata hai uske peeche Jayant wala baan,
Aur ek samjhautey ke tahat
Har adalat band kar leti hai darwaza.
Adalaton ke faisle aadmi nahi
Purani pothiyan karti hain,
Jinmein darj hai pehle se hi
Lambe kurte aur chhoti-chhoti kameezon
Ki dand vyavastha.
Tamaam chhoti-chhoti
Thailiyon ko ulatkar,
Mere gaon mein har navraat ko
Hota hai mahayagya,
Sulag uthte hain goru ke gobar se
Nikale daanon ke saath
Tamaam haath,
Neem par taang diya jaata hai
Laal hindol.
Lekin Bhagwati ko to pasand hoti hai
Khaali taslon ki khanak,
Bujhe hue choolhe mein odhkar
Phoota hua tava
Maze se so rehti hai,
Khaali pateeliyon mein daal kar paanv,
Aangan mein sisakti rehti hain
Tooti charpaiyan,
Chaure pe phool aati hain
Laal-laal sohariyan,
Maya ki maya,
Dikha देती hai bharwakar
Bina dor ke chhalni mein paani.
Jinhein laal sohariyan naseeb hon
Ve devta hote hain
Aur deviyan unke gharon mein paani bharti hain.
Lagn ki raaton mein
Kunwariyon ke kanth par
Chadh jaata hai ek laal paanv wala
Swarnim khadaun,
Aur ek mara hua rajkumar
Ban jaata hai saare desh ka damaad
Jisko kanoon ke mutaabik
De diya jaata hai Sitaon ki khareed-farokht
Ka license.
Sitayein safed dadhiyon mein baandh di jaati hain
Aur dharam ki kitabon mein
Ghaasein garbhvati ho jaati hain.
Dharam desh se bada hai.
Usse bhi bada hai dharam ka nirmata
Jiske kamzor bajuon ki raksha mein
Tarashkar gira dete hain
Purani pothiyon mein likhe hue hathiyar
Tamaam chattan todti chhoti-chhoti baahein,
Kyonki baamhan ka beta
Boodhe chamaar ke balidaan par jeeta hai.
Bhoosuron ke gaon mein saare baashinde
Kirayedaar hote hain
Oosaron ki todti aatmaein
Narak mein dhakel di jaati hain
Toot-ti zameenein gadra kar dakshina ban jaati hain,
Kyonki
Jinki maataon ne kabhi pisua hi nahi piya
Unke naam Bhoopati, Mahipat, Shripat nahi ho sakte,
Unke naam
Sirf Beepat ho sakte hain.
Dharam ke mutaabik unko mil sakta hai
Vaitarni ka reservation,
Basharte ki sankalp dein apni boodhi gaay
Aur khoj laayein sava rupaya karz,
Taaki gaay ko ghodi banaya ja sake.
Kisaan ki gaay
Purohit ki ghodi hoti hai.
Aur sabere hi sabere
Jab gwalinon ki maal par
Boliyan lagti hain,
Tamaam kaale-kaale patthar
Doodh ki baltiyon mein chhapkoriyaan maarte hain,
Aur tab tak raat ko hi bheengi
Jaanghiye ki umas se
Aankhein ko tarotaza karte hue charvahe
Khol dete hain dhoron ki muddhiyan.
Ek baani gaay ka ek londa gobar
Gaon ko Haldighati bana deta hai,
Jis par toot jaati hain jaane
Kitni tokriyan,
Kachchi reh jaati hain dher saari rotiyan,
Jaane kab se chala aa raha hai
Roz ka ye naya Mahabharat
Asal mein har Mahabharat ek
Naye Mahabharat ki gunjaaish pe rukta hai,
Jahan par andhon ki jagah avaidhon ki
Jai bol di jaati hai.
Faadkar phek di jaati hain un sabki
Arziyan
Jo vidhaata ki med todte hain.
Sunta hoon ek aadmi ka kaan faandkar
Nikla tha,
Jiske evaz mein iske baap ne isko kuch hathiyar diye the,
Ye aadmi jail ki kothri ke saath
Tair gaya tha dariya,
Ghodon ki poonchein jhadte-jhadte
Tarashkar gira diya tha rajvanshon ka gaurav.
Dharm ki bheekh, imaan ki gardan hoti hai mere दोस्त!
Jisko kaat kar pokhta kiye gaye the
Sinhasanon ke paaye,
Sadiyan beet jaati hain,
Sinhasan toot jaate hain,
Lekin baaki reh jaati hai khoon ki shinaakht,
Gawahiyan bemani ban jaati hain
Aur mera gaon sadiyon ki jot se vanchit ho jaata hai
Kyonki kagazaat batate hain ki
Vivadit bhoomi Ram-Janki ki thi.
विस्तृत कविता विश्लेषण (Detailed Analysis)
यह कविता केवल धार्मिक कर्मकांडों का विरोध नहीं है, बल्कि यह उस पूरी व्यवस्था का पोस्टमार्टम है जो धर्म की आड़ में गरीबों का शोषण करती है। आइये इसे विस्तार से समझते हैं:
1. भूख और घण्टे का द्वंद्व
कविता की शुरुआत 'लोहे' (सत्ता/ताकत) और 'पीतल' (धर्म/घंट) के टकराव से होती है। कवि कहते हैं कि जैसे ही मंदिर का घंटा बजता है, जीवन का असली संगीत—चक्की पीसने की आवाज़ ('जातों के गीत')—दब जाता है। जो संसाधन (घी, गुड़, चावल) एक गरीब माँ अपने बच्चों के लिए बचाती है, वह धर्म के नाम पर पत्थर की मूर्ति (शिवलिंग) पर चढ़ा दिया जाता है।
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| Context: JNU Student Movement Art |
यह पंक्ति "बेटे से छिपाया घी... चढ़ जाता है शंकर जी के लिंग पर" रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
2. स्त्री का शोषण और 'सिन्दूर' का भ्रम
विद्रोही जी स्त्रियों की दशा पर तीखा प्रहार करते हैं। धर्म स्त्रियों को 'सुहागन' होने का लॉलीपॉप (सिन्दूर) तो पकड़ा देता है, लेकिन उनकी गरीबी को दूर नहीं करता। "बेबाक हो जाते हैं फटे हुए आँचल"—यह दर्शाता है कि धर्म औरतों को सम्मान का नाटक तो करवाता है, लेकिन उनकी आबरू और आर्थिक स्थिति फटे हुए आँचल की तरह उघड़ी रहती है।
3. शंबूक और एकलव्य: ऐतिहासिक अन्याय
कविता सीधे तौर पर जाति व्यवस्था पर हमला करती है। 'मर्यादा पुरुषोत्तमों के वंशज' वे लोग हैं जो सत्ता में हैं और दलितों (शंबूकों) की बस्तियां उजाड़ देते हैं। यदि कोई दलित (एकलव्य) अपनी प्रतिभा से आगे बढ़ना चाहे, तो 'धर्म के मुताबिक़' उसका अंगूठा काट लिया जाता है। 'पुरानी पोथियाँ' (मनुस्मृति आदि) आज भी अदालतों के फैसलों को प्रभावित करती हैं।
4. किसान की गाय, पुरोहित की घोड़ी
यह कविता का सबसे शक्तिशाली रूपक (Metaphor) है: "किसान की गाय, पुरोहित की घोड़ी होती है।"
इसका अर्थ अर्थशास्त्रीय है। किसान गाय की सेवा करता है, उसे खिलाता है, लेकिन उसका सारा लाभ (दूध, दान, दक्षिणा) पुरोहित ले जाता है। धर्म के नाम पर किसान से 'सवा रुपया' कर्ज मंगवाया जाता है ताकि पुरोहित वर्ग ऐश कर सके।
5. 'विवादित भूमि' और अंत
कविता के अंत में विद्रोही जी कहते हैं कि सदियां बीत जाती हैं, सिंहासन टूट जाते हैं, लेकिन खून के धब्बे रह जाते हैं। गाँव के लोग अपनी जमीन से वंचित रह जाते हैं क्योंकि सरकारी कागज़ और धर्म की किताबें यह घोषित कर देती हैं कि वह जमीन किसी भगवान (राम-जानकी) की थी। यह आधुनिक भारत के बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद जैसे मुद्दों की ओर भी एक भविष्यदर्शी इशारा है।
कवि परिचय: रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
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रमाशंकर यादव 'विद्रोही' (1957–2015) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की पहचान थे। वे एक ऐसे जनकवि थे जिन्होंने अपनी कविताएँ कागज़ पर कम और सड़कों पर, ढाबों पर और आंदोलनों के बीच ज़्यादा लिखीं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
उत्तर: इस कविता का मुख्य विषय सामंतवाद, धार्मिक पाखंड और जातिगत शोषण का विरोध है। कवि दिखाता है कि कैसे धर्म गरीबों के भोजन और अधिकारों को छीन लेता है।
उत्तर: यह एक रूपक है जिसका अर्थ है कि मेहनत किसान करता है (गाय को पालना), लेकिन उसका आर्थिक लाभ (घोड़ी जैसी सवारी/ऐश्वर्य) पुरोहित वर्ग उठाता है।
उत्तर: रमाशंकर यादव 'विद्रोही' JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) के एक प्रसिद्ध जनकवि थे जो अपनी क्रांतिकारी कविताओं और फक्कड़ जीवनशैली के लिए जाने जाते थे।
निष्कर्ष: रमाशंकर विद्रोही की यह कविता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या धर्म का उद्देश्य मानव कल्याण है या शोषण? साहित्यशाला पर ऐसी ही और क्रांतिकारी कविताओं के विश्लेषण के लिए जुड़े रहें।