श्री हनुमान बाहुक: संपूर्ण पाठ, अर्थ और शारीरिक पीड़ा निवारण का अचूक उपाय
हिंदी साहित्य के भक्ति काल के शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास का जीवन केवल 'रामचरितमानस' की चौपाइयों तक सीमित नहीं था। एक समय ऐसा भी आया जब कलयुग के प्रभाव से यह महान संत शारीरिक व्याधियों से टूट गया। जब औषधियां विफल हो गईं, तब जन्म हुआ एक ऐसी रचना का जिसे हम हनुमान बाहुक (Hanuman Bahuk) कहते हैं।
साहित्यशाला के इस विस्तृत लेख में हम न केवल भगवान राम के अनन्य भक्त की इस अंतिम रचना का विश्लेषण करेंगे, बल्कि इसका संपूर्ण पाठ (Full Lyrics) और इसके स्वास्थ्य लाभों पर भी चर्चा करेंगे।
हनुमान बाहुक: पीड़ा से मुक्ति का ऐतिहासिक सच
ऐतिहासिक प्रमाणों (मूल गोसाईं चरित) के अनुसार, संवत 1664 के आसपास वृद्धावस्था में तुलसीदास जी को भुजाओं में असहनीय पीड़ा (Vat Rog/Arthritis/Gout) हुई। शरीर में फोड़े-फुंसियां हो गईं। यह पीड़ा इतनी तीव्र थी कि वे लेखन तो दूर, चैन से सो भी नहीं पाते थे।
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| संकट मोचन: तुलसीदास जी ने अपनी बाहु पीड़ा (Arm Pain) और वात रोग के निवारण के लिए इन्हीं महाबली हनुमान की स्तुति की थी। |
जैसे कुरुक्षेत्र में अर्जुन और कर्ण अपने-अपने अस्तित्व के लिए लड़े थे, वैसे ही तुलसीदास जी ने अपनी शारीरिक व्याधि से लड़ने के लिए 'हनुमान बाहुक' रूपी शस्त्र का संधान किया।
स्वास्थ्य लाभ और ज्योतिषीय महत्व (Health Benefits & Medical Astrology)
हनुमान बाहुक केवल भक्ति नहीं है, यह एक 'उपचार' है। भक्त और विद्वान मानते हैं कि इस पाठ में प्रयुक्त बीजाक्षर (Seed Sounds) शरीर के ऊर्जा चक्रों को संतुलित करते हैं। इसके प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
- वात रोग (Arthritis & Gout): यह पाठ विशेष रूप से जोड़ों के दर्द और वात रोगों के शमन के लिए जाना जाता है।
- भय और मानसिक तनाव: यह पाठ "प्रेत-बाधा" और अज्ञात भय (Anxiety) को दूर करता है।
- बाहु पीड़ा (Arm/Shoulder Pain): चूंकि तुलसीदास जी ने इसे बांह के दर्द के लिए लिखा था, यह फ्रोजन शोल्डर (Frozen Shoulder) जैसी समस्याओं में मानसिक संबल देता है।
क्या मंत्र 'इलाज' कर सकते हैं? (The Science of Sound)
तुलसीदास जी ने सिद्ध किया कि शब्द केवल भाव नहीं, बल्कि तरंगें (Vibrations) हैं। आधुनिक Medical Astrology (चिकित्सा ज्योतिष) भी यही मानता है।
शरीर में नसों (Nerves) का कारक 'बुध' है और हड्डियों व वात का कारक 'शनि' है। जब ये ग्रह पीड़ित होते हैं, तो दवाइयां काम करना बंद कर देती हैं। ऐसे में 'मंत्र चिकित्सा' ही नर्वस सिस्टम को ठीक करती है। यदि आप भी पुराने दर्द, नसों की कमजोरी या वात से जूझ रहे हैं, तो इसके ज्योतिषीय पक्ष को समझना अनिवार्य है। विस्तार से जानें: नर्वस सिस्टम और स्वास्थ्य ज्योतिष उपाय (Medical Astrology Remedies)।
श्री हनुमान बाहुक: संपूर्ण पाठ (Full Lyrics)
नीचे हनुमान बाहुक का शुद्ध और संपूर्ण पाठ दिया गया है। शारीरिक कष्ट निवारण हेतु इसका पाठ मंगलवार या शनिवार को करना विशेष फलदायी माना जाता है।
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीजानकीवल्लभो विजयते ॥
श्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत
॥ छप्पय ॥
१. सिंधु-तरन, सिय-सोच हरन, रबि-बालबरन-तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ॥
गहन-दहन-निरदहन-लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ, सेवक हित सन्तत निकट।
गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत, समन सकल-संकट-बिकट ॥
२. स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन तेज घन।
उर बिसाल, भुज दण्ड चण्ड नख बज्र बज्रतन ॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल-बल-भानन॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥
॥ झूलना ॥
३. पञ्चमुख-छमुख-भृगुमुख्य भट-असुर-सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो।
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है पवन को पूत रजपूत रुरो॥
॥ घनाक्षरी ॥
४. भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो॥
५. भारत में पारथ के रथ केतु कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो।
कह्यो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो॥
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँगहूँतें घाटि नभतल भो।
नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ॥
६. गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो॥
संकटसमाज असमंजस भो रामराज, काज जुग-पूगनिको करतल पल भो।
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह, लोक पाल पालन को फिर थिर थल भो॥
७. कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ैं मानो, नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो।
जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो॥
कुम्भकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनको, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान-सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥
८. दूत रामरायको, सपूत पूत पौनको, तू, अंजनीको नन्दन प्रताप भूरि भानु सो।
सीय-सोच-समन, दुरित-दोष-दमन, सरन आये अवन, लखनप्रिय प्रान सो॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबेको भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।
ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो॥
९. दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को॥
लोक-परलोकतें बिसोक सपने न सोक, तुलसीके हिये है भरोसो एक ओरको।
रामको दुलारो दास बामदेवको निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोरको॥
१०. महाबल-सीम, महाभीम, महाबानइत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को।
कुलिस-कठोरतनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीरको॥
दुर्जनको कालसो कराल पाल सज्जनको, सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको।
सीय-सुखदायक दुलारो रघुनायकको, सेवक सहायक है साहसी समीर को॥
११. रचिबेको बिधि जैसे, पालिबेको हरि, हर, मीच मारिबेको, ज्याइबेको सुधापान भो।
धरिबेको धरनि, तरनि तम दलिबेको, सोखिबे कृसानु, पोषिबेको हिम-भानु भो॥
खल-दुःख-दोषिबेको, जन-परितोषिबेको, माँगिबो मलीनताको मोदक सुदान भो।
आरतकी आरति निवारिबेको तिहुँ पुर, तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो॥
१२. सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँकको।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँकको॥
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको।
सब दिन रूरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँकको॥
१३. सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी।
लोक परलोकको बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी॥
केसरीकिसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधानकी।
बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमानकी॥
१४. करुना निधान, बलबुद्धिके निधान, मोद-महिमानिधान, गुन-ज्ञानके निधान हौ।
बामदेव-रूप, भूप राम के सनेही, नाम, लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ॥
आपने प्रभाव, सीतानाथके सुभाव सील, लोक-बेद-बिधिके बिदुष हनुमान हौ।
मनकी, बचनकी, करमकी तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ॥
१५. मनको अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराजके समाज साज साजे हैं।
देव-बंदीछोर रनरोर केसरीकिसोर, जुग-जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं॥
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसीकी ओर, सुनि सकुचाने साधु, खलगन गाजे हैं।
बिगरी सँवार अंजनीकुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमानके निवाजे हैं॥
॥ सवैया ॥
१६. जानसिरोमनि हौ हनुमान सदा जनके मन बास तिहारो।
ढारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो॥
साहेब सेवक नाते ते हातो कियो सो तहाँ तुलसीको न चारो।
दोष सुनाये तें आगेहुँको होशियार ह्वै हों मन तौ हिय हारो॥
१७. तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे उर घाले।
तेरे निवाजे गरीबनिवाज बिराजत बैरिनके उर साले॥
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरीके-से जाले।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले॥
१८. सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से।
तैं रन-केहरि केहरिके बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से॥
तोसों समत्थ सुसाहेब सेइ सहै तुलसी दुख दोष दवासे।
बानर बाज बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से॥
१९. अच्छ-बिमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न से कुंजर केहरि-बारो॥
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीरदुलारो।
पापतें, सापतें, ताप तिहूँतें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो॥
॥ घनाक्षरी ॥
२०. जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन, मन अनुमानि, बलि, बोल न बिसारिये।
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो, ताहि माहुर न मारिये।
साहसी समीरके दुलारे रघुबीरजूके, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये॥
२१. बालक बिलोकि, बलि, बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये।
रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल, आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये॥
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलिको, निहारि सो निवारिये।
केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये॥
२२. उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये।
राम के गुलामनिको कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये॥
साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये॥
२३. रामको सनेह, राम साहस लखन सिय, रामकी भगति, सोच संकट निवारिये।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंतको भरोसो तेरो भारिये॥
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठिकै बिचारिये।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये॥
२४. लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो, देव दुखी देखियत भारिये।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये॥
२५. करम-कराल-कंस भूमिपालके भरोसे, बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरैगी।
बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि, बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी॥
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसीकी, बाँहपीर महाबीर, तेरे मारे मरैगी॥
२६. भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है, बेदन बिषम पाप-ताप छलछाँहकी।
करमन कूटकी कि जन्त्र मन्त्र बूटकी, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँहकी॥
पैहहि सजाय नत कहत बजाय तोहि, बावरी न होहि बानि जानि कपिनाँहकी।
आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी, सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बाँहकी॥
२७. सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है॥
तोरि जमकातरि मदोदरी कढ़ोरि आनी, रावनकी रानी मेघनाद महँतारी है।
भीर बाँहपीरकी निपट राखी महाबीर, कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है॥
२८. तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि-राहुकी।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहुकी॥
साम दाम भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी।
आलस अनख परिहासकै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसीके बाहुकी॥
२९. टूकनिको घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है।
कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर, आपनो बिसारिहैं न मेरेहू भरोसो है॥
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरीको मरन खेल बालकनिको सो है॥
३०. आपने ही पापतें त्रितापतें कि सापतें, बढ़ी है बाँहबेदन कही न सहि जाति है।
औषध अनेक जन्त्र-मन्त्र-टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म, काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत, ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है॥
३१. दूत रामरायको, सपूत पूत बायको, समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥
एते बडे़ साहेब समर्थको निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन कायको।
थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको, कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभाय को॥
३२. देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत हैं॥
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं।
क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं॥
३३. तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबरके॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके।
तुलसी के माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके॥
३४. पालो तेरे टूकको परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।
भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥
अंबु तू हौं अंबुचर, अंबु तू हौं डिंभ, सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसीकी बाँह पर लामीलूम फेरिये॥
३५. घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है॥
करुनानिधान हनुमान महाबलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं तैं उड़ाई है।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है॥
॥ सवैया ॥
३६. रामगुलाम तुही हनुमान गोसाँइ सुसाँइ सदा अनुकूलो।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥
बाँहकी बेदन बाँहपगार पुकारत आरत आनँद भूलो।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो॥
॥ घनाक्षरी ॥
३७. कालकी करालता करम कठिनाई कीधौं, पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डावरे॥
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहूँ तावरे।
भूतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान, जानियत सबहीकी रीति राम रावरे॥
३८. पाँयपीर पेटपीर बाँहपीर मुँहपीर, जरजर सकल सरीर पीरमई है।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहिपर दवरि दमानक सी दई है॥
हौं तो बिन मोलके बिकानो बलि बारेही तें, ओट रामनामकी ललाट लिखि लई है।
कुंभज के किंकर बिकल बूड़े गोखुरनि, हाय रामराय ऐसी हाल कहूँ भई है॥
३९. बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर-केतुजा कुरोग जातुधान है।
राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान है॥
सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान है।
तुलसी सँभारि ताड़का-सँहारि भारि भट, बेधे बरगदसे बनाइ बानवान हैं॥
४०. बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, रामनाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं।
पर्यो लोकरीतिमें पुनीत प्रीति रामराय, मोहबस बैठो तोरि तरकितराक हौं॥
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं।
तुलसी गोसाइँ भयो भोंड़े दिन भूलि गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥
४१. असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय-हाय को।
तुलसी अनाथसो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सीलसिंधु आपने सुभायको॥
नीच यहि बीच पति पाइ भरुहाइगो, बिहाइ प्रभु-भजन बचन मन काय को।
तातें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि-फूटि निकसत लोन रामरायको॥
४२. जिओं जग जानकीजीवनको कहाइ जन, मरिबेको बारानसी बारि सुरसरि को।
तुलसीके दुहूँ हाथ मोदक है ऐसे ठाउँ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरिको॥
मोको झूठो साँचो लोग रामको कहत सब, मेरे मन मान है न हरको न हरिको।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोगसिंधु क्यों न डारियत गाय खुरकै॥
४४. कहों हनुमानसों सुजान रामरायसों, कृपानिधान संकरसों सावधान सुनिये।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरंचि सब देखियत दुनिये॥
माया जीव कालके करमके सुभायके, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये।
तुम्हतें कहा न होय हाहा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौन ही बयो सो जानि लुनिये॥
पाठ की विधि और महत्व
जैसे श्री कृष्ण की भक्ति में प्रेम प्रधान है, वैसे ही हनुमान बाहुक में 'विश्वास' प्रधान है। यदि आप भी कर्ण के संघर्ष की तरह जीवन की कठिनाइयों से घिरे हैं, तो यह पाठ आपके लिए संजीवनी का कार्य करेगा।
तुलसीदास जी ने अंत में यही कहा है कि शरीर का सुख और दुःख तो कर्मों का फल है, लेकिन हनुमान जी की कृपा से विष भी अमृत बन सकता है।
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| राम-हनुमान का अटूट संबंध: "राम को दुलारो दास..." — हनुमान बाहुक में तुलसीदास जी हनुमान जी से अपनी पीड़ा हरने के लिए इसी रिश्ते की दुहाई देते हैं। |
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न: हनुमान बाहुक का पाठ किस लिए किया जाता है?
उत्तर: इसका पाठ मुख्य रूप से वात रोग (Arthritis), बांहों के दर्द और शारीरिक व्याधियों के निवारण हेतु किया जाता है।
प्रश्न: हनुमान बाहुक किसने लिखा?
उत्तर: इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने संवत 1664 के लगभग अपनी शारीरिक पीड़ा के समय की थी।
प्रश्न: क्या इसके पाठ के लिए कोई विशेष नियम है?
उत्तर: शुद्ध अंतःकरण से मंगलवार या शनिवार को इसका पाठ करना चाहिए। साथ ही यदि आप अपने नक्षत्र और ग्रह दशा को ध्यान में रखकर पाठ करें तो लाभ शीघ्र मिलता है।
जीवन की दिशा बदलना चाहते हैं?
मैं डॉ. सुनील नाथ झा, ज्योतिषी, अंकशास्त्री और वास्तु विशेषज्ञ हूँ। 1998 से मैं वैदिक विज्ञान के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन कर रहा हूँ। मैंने "वास्तुरहस्यम्" और "ज्योतिषतत्त्वविमर्श" जैसी पुस्तकें लिखी हैं। यदि आप स्वास्थ्य, करियर या विवाह संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, तो परामर्श अवश्य लें।
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