ये एक बात समझने में रात हो गई है - Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai | तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ
ये एक बात समझने में रात हो गई है Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ ये एक बात समझने में रात हो गई है मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूँगा सोचा था तिरी जुदाई ही वज्ह-ए-नशात हो गई है बदन में एक तरफ़ दिन तुलूअ' मैं ने किया बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र मैं नज़्म लिखने लगा था कि ना'त हो गई है ये एक बात समझने में रात हो गई है Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ