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मातृभाषा का महोत्सव - Matribhasha Ka Mahatva | Hindi Diwas Par Kavita

इक बार कहो तुम मेरी हो - Ik Baar Kaho Tum Meri Ho | Ibn-E-Insha - Love Poems In Hindi

इक बार कहो तुम मेरी हो - Ik Baar Kaho Tum Meri Ho इब्न-ए-इंशा | Ibn-E-Insha हम घूम चुके बस्ती बन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो। जब सावन-बादल छाए हों जब फागुन फूल खिलाए हों जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो। हाँ दिल का दामन फैला है क्यों गोरी का दिल मैला है हम कब तक पीत के धोके में तुम कब तक दूर झरोके में कब दीद से दिल की सेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो। क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का ये काज नहीं बंजारे का सब सोना रूपा ले जाए सब दुनिया, दुनिया ले जाए तुम एक मुझे बहुतेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो। - इब्न-ए-इंशा इक बार कहो तुम मेरी हो - Ik Baar Kaho Tum Meri Ho | Ibn-E-Insha - Love Poems In Hindi (दीद=दर्शन, सेरी=तॄप्ति, सूद-ख़सारे=लाभ-हानि) Hinglish Transliteration of  Ik Baar Kaho Tum Meri Ho : Ik Baar Kaho Tum Meri Ho Ibn-e-Insha Hum ghoom chuke basti ban mein Ik aas ka faans liye man mein Koi saajan ho, koi pyaara ho Koi deepak ho, koi ta...

Mang Ki Sindoor Reekha - मांग की सिन्दूर रेखा | कुमार विश्वास - Kumar Vishwas

Mang Ki Sindoor Reekha - मांग की सिन्दूर रेखा  Kumar Vishwas - कुमार विश्वास  हिंदी कविता मांग की सिन्दूर रेखा तुमसे ये पूछेगी कल, यूं मुझे सर पर सजाने  का तुम्हें अधिकार क्या है? तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी, गर वो सब कुछ बचपना था तो कहो फिर प्यार क्या है।  कल कोई अल्हड़ अयाना बाबरा झोंका पवन का, जब तुम्हारे इंगितों पर गन्ध भर देगा चमन में या कोई चंदा धरा का रूप का मारा बेचारा, कल्पना के तार से नक्षत्र  जड़  देगा गगन पर तब यही विछुये, महावर,  चुडियां, गजरे कहेंगे, इस अमर सौभाग्य के श्रंगार का अधिकार क्या है। मांग की सिन्दूर रेखा तुमसे ये पूछेगी कल, यूं मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है। तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी, गर वो सब कुछ बचपना था तो कहो फिर प्यार क्या है। कल कोई दिनकर विजय का  सेहरा सर पर सजाये, जब तुम्हारी सप्तवर्णी  छांव में सोने चलेगा या कोई हारा थका व्याकुल सिपाही तुम्हारे, वक्ष पर धर सीस हिचकियां रोने लगेगा तब किसी तन पर कसीं दो  बांह जुड कर पूछ लेंगी, इस प्रणय जीवन समर में  जीत क्या है हार क्...

यह घर, इसका बरामदा, इसमें दो खिड़कियाँ - Yeh Ghar, Iska Baramda, Isme Do Khidkiyan | By Suhani Dogra

यह घर, इसका बरामदा, इसमें दो खिड़कियाँ Yeh Ghar, Iska Baramda, Isme Do Khidkiyan  यह घर , इसका बरामदा , इसमें दो खिड़कियाँ , और इन खिड़कियों से झाँकता मेरा हृदय , बिन पलक झपकाए, देखता है हर चलते राहगीर को, इस इंतजार में कि कब तुम दस्तख दोगे मेरे देहलीज पर ।। मेरे अंगने का दरवाजा सदैव तुम्हारे इंतजार में खुला रहा , पर तुम्हारी हाज़री नहीं लगी, दिल आँखों से पूछता रहा  और मन दिल से। हार गए सब, अब सिर्फ जीत रहा है, तो तुम्हारा दिया हुआ घाव , उस घाव से निरंतर बहता खून, और आंखों से तेजाब से वो आँसू ,  गिरते तो मुख जल-भुन उठता।। सोचती हूँ, यह दरवाजा अब बंद कर,  इसमें ताला लगा दूँ, आखिर तुम्हें भी तो मालूम पड़े, कि कितना कष्ट है, वापस किसी की दस्तख़ में आना और उसके दरवाजे से अंदर आ  उस मरहम को लगाना,  और घर के हर एक कमरे की मरम्मत करना।। सोचती हूँ,  कि तुम्हें एक मौका और दूंगी , जब तुम आओगे, पर, क्या तुम इस मौके के मोहताज हो ? क्या तुम कभी फिर से मेरे दरवाज़े पर दस्तख दे,  मेरा नाम फिर एक बार पुकारोगे? क्या तुम मेरे घाव का खून रोक पाओगे? क्या तुम मेरे ...

तुमने मुझसे कहा प्रिय ! Tumne Mujhse Kaha Priya | Love Poems In Hindi | Ishq Shayari

तुमने मुझसे कहा प्रिय ! Tumne Mujhse Kaha Priya अश्रु | Love Poems In Hindi तुमने मुझसे कहा प्रिय ! मुझे पलकों पर बिठा कर रखना साँसों में तेरे रहूँ मैं मन में सदा सजा कर रखना | प्रेम का जो सम्बंध बना है उसे खुशियों से सजा कर रखना यदि कभी आये क्रोध मुझ पर उसे न ख़ुद में छिपा कर रखना | जब आँखों से बात करो तब न ग़म को छिपा कर रखना यदि कभी भी रूठ जाओ मुझ से तब चित्त को न सता कर रखना | और मैं तुमसे माँगू क्या ? मैं तुमको तुमसे मॉंग रही हूँ मैं ख़ुद को, ख़ुद से मॉंग रही हूँ बस! स्थान प्रथम तो मॉंग रही हूँ | आँखें नम हो गईं मेरी माफ़ी माँग सकता नहीं हूँ आँखों में जिसे बसा चूका हूँ उसे हटा सकता नहीं हूँ | माफ़ करना मुझे प्रिय ! तुम्हे हृदय में बसा सकता नहीं हूँ जो स्थान दे दिया है गुरु को वहाँ सजा सकता नहीं हूँ | माफ़ करना मुझे प्रिय ! पलकों पर बिठा सकता नहीं हूँ मातृ, पितृ के स्थान पर आँखों में बसा सकता नहीं हूँ | आत्मा में तो ईश को मैं पूर्णतः स्थापित कर चुका हूँ पर गर्व से किसी और को प्रथम शोभित कर चुका हूँ | माफ़ करना मुझे प्रिय ! रक्त समर्पित कर चुका हूँ अपने देश को, वर्षों पहले साँसें भी अर्पित ...

Jab Purane Khaton Ko - जब पुराने ख़तों को...Love Poems In Hindi | Ishq Hindi Kavita | Harsh Nath Jha

 Love Poems In Hindi | Ishq Hindi Kavita जब पुराने ख़तों को... जब पुराने ख़तों को खोला था मैंने कुछ झूठें लब्ज़ों को तौला था मैंने उम्मीदों की जब थी चादर हटाई एक अरसे बाद, आँखों से बोला था मैंने | रोया नहीं, पर ख़ुद पर हँसा था देखा वहाँ गर्द-ए-वफ़ा जमा था फिर दिखा मुझे उस कागज़ पर वादा जिस कागज़ पर मुझे सदा गुमाँ था | क्यों उन खतों में हैं डूबने की चाहत ? मिलती क्यों नहीं कुछ ज़ख्मों से राहत ? क्यों फिर खड़ा हूँ उसी मोड़ पर मैं जहाँ पर हुआ था कल ही मैं आहत | दिया था दोस्ती का उसने सहारा मैं बस जहाँ में उससे था हारा माँगी हर माफ़ी जो उसको न खोऊँ राह खोकर राही है होता आवारा | उसका भी हक़ था उन खतों पर भी उतना मैंने उसको दिल से चाहा था जितना मुझे देख ख़ुदा भी तब रोया होगा पूछ लो उसी से मैं रोया था कितना | क्यों उन खतों की स्याही फिर फैली ? क्यों उन्हें किताबों में मैं हर बार छिपाऊँ ? क्यों न उनको मैं जला फिर से पाया  ? क्यों उन्हें ख़ुद को मैं हर रोज़ दिखाऊँ ? तब तरस गईं थीं आँखें मेरी पर पहली चिट्ठी तेरी आयी नहीं ' खैरियत है सब ' बस ये पूछ लेते बस तेरी ये बात मुझे भायी नहीं बस तेरी ये बा...

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...