नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं – तंज़िया उर्दू शायरी, समाज और सियासत पर व्यंग्य नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं - Naujawaan Log Paijaame Ko Bura Kehte Hain पैंट फट जाए तो क़िस्मत का लिखा कहते हैं अपने अशआ'र में जुमअ को जुमा कहते हैं ऐसे उस्ताद को फ़ख़रुश्शुअरा कहते हैं नज़्म को गिफ़्ट रुबाई को अता कहते हैं शेर वो ख़ुद नहीं कहते हैं चचा कहते हैं आई-एम-एफ़ को समझते हैं मईशत का इलाज लोग अल-कुहल को खाँसी की दवा कहते हैं ये तो चलती नहीं पी-एम की इजाज़त के बग़ैर इस को ऐवान-ए-सदारत की हवा कहते हैं जाने कब इस में हमें आग लगानी पड़ जाए हम सियासत के जनाज़े को चिता कहते हैं जब से बच्चों को पसंद आई हैं हिन्दी फिल्में मुझ को अब्बा नहीं कहते वो पिता कहते हैं मेरी बारी पे हुकूमत ही बदल जाती है अब वज़ारत को ग़ुबारे की हवा कहते हैं लोड-शेडिंग की शिकायत पे दोलत्ती मारे लोग बिजली के मिनिस्टर को गधा कहते हैं भूक तख़्लीक़ का टैलेंट बढ़ा देती है पेट ख़ाली हो तो हम शेर नया कहते हैं - खालिद इरफ़ान इस शायरी की ख़ास बातें समाज पर तंज़ – पहली पंक्तियों में नौजवानों के कपड़ों और रवैये को लेकर शायर ने दिल...
Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये सादगी तो हमारी जरा देखिये, एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम, जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि, किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से, हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम, बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||