नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम - Naya Ik Rishta Paida Kyun Karen Hum
|| John Elia Hindi Ghazal ||
|| जौन एलिया हिंदी ग़ज़ल ||
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम ?
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम ?
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम ?
ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी,
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम ?
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं,
वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम ?
वफ़ा, इख़्लास, क़ुर्बानी, मोहब्बत,
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम ?
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम ?
सुनादे अस्मते मरियम का किस्सा,
पर इस बात को वाह क्यों करे हम ?
पर इस बात को वाह क्यों करे हम ?
ज़ुलह-खाये-अज़ीज़ा बात ये है,
भला घाटे का सौदा क्यों करे हम ?
भला घाटे का सौदा क्यों करे हम ?
हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम ?
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम ?
किया था अहद जब लम्हों में हमने,
तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम ?
उठाकर क्यों न फेंके सारी चीज़ें,
फ़क़त कमरों में टहला क्यों करे हम ?
फ़क़त कमरों में टहला क्यों करे हम ?
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी,
तो फिर दुनिया की परवाह क्यूँ करें हम ?
बरहना है सरे बाज़ार तो क्या ?
भला अंधों से पर्दा क्यों करे हम ?
भला अंधों से पर्दा क्यों करे हम ?
है बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी,
तो खुद पर भी भरोसा क्यों करे हम ?
पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें,
ज़मीन का बोझ हल्का क्यों करे हम ?
चबाले क्यों न खुद ही अपना ढांचा,
तुम्हे रातब मुहैय्या क्यों करे हम ?
ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती,
यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम ?