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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता - Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta | Nida Fazli Ghazal

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता - Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta

Nida Fazli Ghazal

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता 

कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता 

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता - Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta  Nida Fazli Ghazal

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो 

जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता 


कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें 

छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता 


ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं 

ज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता 


चराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है 

ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता 

-

निदा फ़ाज़ली

Nida Fazli Ghazal

Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta


kabhī kisī ko mukammal jahāñ nahīñ miltā 

kahīñ zamīn kahīñ āsmāñ nahīñ miltā 


tamām shahr meñ aisā nahīñ ḳhulūs na ho 

jahāñ umiid ho is kī vahāñ nahīñ miltā 


kahāñ charāġh jalā.eñ kahāñ gulāb rakheñ 

chhateñ to miltī haiñ lekin makāñ nahīñ miltā 


ye kyā azaab hai sab apne aap meñ gum haiñ 

zabāñ milī hai magar ham-zabāñ nahīñ miltā 

charāġh jalte hī bīnā.ī bujhne lagtī hai 

ḳhud apne ghar meñ hī ghar kā nishāñ nahīñ miltā 


वो जो हम में तुम में क़रार था - Wo Jo Ham Me Tum Me Karaar Tha

मस्त नज़रों से अल्लाह बचाए - Mast Nazron Se Allah Bachaye


Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta
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Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta Song
Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta Ghazal
Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta Writer
Writer Of Kabhi Kisi Ko Mukammal Jahan Nahi Milta

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Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...

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