हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में 'नई कविता' (Nayi Kavita) आंदोलन को दिशा देने वाले मनीषी और 'नई कविता' पत्रिका के संपादक डॉ. जगदीश गुप्त का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। जहाँ एक ओर रामदास (रघुवीर सहाय) जैसी कविताएँ सामाजिक यथार्थ और भीड़ की क्रूरता को दर्शाती हैं, वहीं जगदीश गुप्त की कविताएँ व्यक्ति के आंतरिक द्वंद्व और बौद्धिक आस्था को स्वर देती हैं।
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| This image visually represents the central theme of the poem "Aastha" — holding faith not in the visible, but in the unknown path that lies ahead. |
आज हम उनकी सुप्रसिद्ध लघु कविता 'आस्था' (Aastha) का गहन अध्ययन करेंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत BA और MA हिंदी के पाठ्यक्रम में यह कविता अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कविता हमें Modernism (आधुनिकतावाद) के उस दौर की याद दिलाती है जब कवि पुराने मूल्यों को तोड़कर नए प्रतिमान गढ़ रहे थे।
कवि परिचय: एक नज़र में
डॉ. जगदीश गुप्त न केवल एक सिद्धहस्त कवि थे, बल्कि एक उच्च कोटि के चित्रकार और आलोचक भी थे। उनका लेखन प्रयाग (इलाहाबाद) की साहित्यिक उर्वरता का प्रमाण है। उनकी चिंतनधारा में भारतीय दर्शन की गहरी छाप है, जो कहीं न कहीं बौद्ध और ब्राह्मणवादी चिंतन (Buddhism and Brahmanism) के समन्वय जैसी प्रतीत होती है। 'आस्था' कविता उनके इसी दार्शनिक व्यक्तित्व का परिचायक है।
आप उनकी अन्य रचनाएँ हिन्दवी (Hindwi) पर भी पढ़ सकते हैं।
आस्था (मूल पाठ) - जगदीश गुप्त
जो कुछ प्राणों में है
प्यार नहीं,
पीर नहीं,
प्यास नहीं —
जो कुछ आँखों में है
स्वप्न नहीं,
अश्रु नहीं,
हास नहीं —
जो कुछ अंगों में है
रूप नहीं,
रक्त नहीं —
जो कुछ शब्दों में है
अर्थ नहीं,
नाद नहीं,
श्वास नहीं —
उस पर आस्था मेरी।
उस पर श्रद्धा मेरी।
उस पर पूजा मेरी।
कविता का वाचन और विश्लेषण (Video)
वीडियो स्रोत: YouTube (छात्रों की समझ के लिए)
कठिन शब्दार्थ (Word Meanings)
- पीर: पीड़ा, दर्द, वेदना। (तुलना करें: ख़ुमार बाराबंकवी की ग़ज़लों में भी 'पीर' का गहरा पुट मिलता है)।
- हास: हँसी, उल्लास।
- नाद: ध्वनि, गूँज, शब्द का संगीतात्मक पक्ष।
- श्वास: प्राणवायु, जीवन का लक्षण।
- आस्था: गहरा विश्वास, निष्ठा (Faith/Belief)।
भावार्थ: दार्शनिक गहराई (Deep Paraphrasing)
यह खंड कविता को केवल 'अनुवाद' नहीं, बल्कि उसके दार्शनिक संकेतों को विस्तार देता है।
1. "जो कुछ प्राणों में है / प्यार नहीं, पीर नहीं, प्यास नहीं"
मेरे भीतर प्राणों की जो सबसे गहरी हलचल है, वह न साधारण मानवीय प्रेम है, न कोई पीड़ा या दुख, और न ही कोई अभाव या प्यास जैसी कमी। जो कुछ भी मेरी जीवन-शक्ति के केंद्र में है, वह इन सामान्य अनुभूतियों से परे है। कवि यह बता रहा है कि उसकी प्राण-गत अनुभूति इतनी सूक्ष्म और व्यापक है कि उसे प्रेम, पीड़ा या आवश्यकता जैसे शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता।
2. "जो कुछ आँखों में है / स्वप्न नहीं, अश्रु नहीं, हास नहीं"
मेरी आँखों में जो चमक, गहराई या अनुभूति है, वह न तो कोई सपना है जिसे देखा जा सके, न कोई आँसू है जो दुःख या संवेदनशीलता का संकेत दे, और न ही कोई मुस्कान जो प्रसन्नता की खबर दे। मेरी दृष्टि के भीतर जो है, वह दृश्यात्मक भावों के किसी भी पारंपरिक रूप में समझा नहीं जा सकता। यह अनुभूति स्वप्न-विहीन, आँसू-विहीन, हँसी-विहीन एक अतिकालिक सत्य है।
3. "जो कुछ अंगों में है / रूप नहीं, रक्त नहीं"
मेरे शरीर में जो कुछ भी संचरित हो रहा है, वह न कोई बाहरी रूप-रंग है, न शरीर में बहने वाला रक्त मात्र। यह अनुभूति केवल देहगत या जैविक नहीं है; यह शरीर की सीमाओं से परे किसी और ही तत्व की उपस्थिति का संकेत देती है। 'रूप' का न होना दर्शाता है कि वह दृश्य नहीं है, और 'रक्त' का न होना बताता है कि वह केवल जीवन-प्रक्रिया का एक शारीरिक हिस्सा भी नहीं है।
4. "जो कुछ शब्दों में है / अर्थ नहीं, नाद नहीं, श्वास नहीं"
मेरे शब्दों में जो कुछ भी है, वह न कोई स्पष्ट अर्थ है जिसे भाषा में व्यक्त किया जा सके, न कोई ध्वनि है जो सुनाई दे सके, और न ही कोई ऐसी श्वास है जो बोलने के जैविक प्रवाह का हिस्सा हो। वे अर्थहीन नहीं, बल्कि 'अर्थ-से-परे' (Beyond Meaning) हैं। वे मौन हैं, पर मौन की अनुपस्थिति के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि वे अनकहे का प्रतिनिधित्व करते हैं।
5. "उस पर आस्था मेरी / उस पर श्रद्धा मेरी / उस पर पूजा मेरी"
कवि उस अज्ञात, अनाम, अवर्णनीय सत्ता पर अपना विश्वास रखता है। वही सत्ता उसके प्राणों, आँखों, अंगों और शब्दों के पीछे उपस्थित है। यह कोई ठोस देवता, कोई विचारधारा या कोई अनुभूति नहीं, बल्कि उन सभी के पीछे मौजूद परम-स्थिति है। निष्कर्षत: "मेरा विश्वास उन चीज़ों पर नहीं है जिन्हें देखा, छुआ या कहा जा सके। मेरा विश्वास उस पर है जो दिखाई न देकर भी मौजूद है।"
विशेष / काव्य सौंदर्य (Literary Analysis)
भाव पक्ष (Emotional Aspect):
- यह कविता 'नई कविता' के मुख्य स्वर 'अनास्था में आस्था' की खोज को दर्शाती है।
- कवि ने परम्परागत रोमानियत (Romanticism) का विरोध किया है। पाश्चात्य साहित्य में Robert Frost की 'The Road Not Taken' की तरह यहाँ भी कवि एक 'अलग रास्ता' चुन रहा है—भीड़ के विश्वासों से अलग।
- यहाँ अस्तित्ववाद (Existentialism) का प्रभाव दिखता है।
कला पक्ष (Artistic Aspect):
- भाषा: शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली हिंदी।
- शैली: निषेधात्मक शैली (Neti-Neti) का प्रयोग।
- तुलना: जहाँ 'दयावती का कुनबा' जैसी कविताएँ सामाजिक ढाँचे का चित्रण करती हैं, वहीं 'आस्था' नितांत वैयक्तिक और आध्यात्मिक धरातल की कविता है।
परीक्षा उपयोगी प्रश्न (University Level Question Bank)
ये प्रश्न दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों के B.A. (Hons) और M.A. के स्तर के अनुरूप हैं।
1. अत्यल्प उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer)
- कविता 'आस्था' के रचयिता कौन हैं?
- कविता में “जो कुछ प्राणों में है” से कवि क्या नकारता है?
- “जो कुछ आँखों में है” में किन तीन अनुभूतियों का निषेध किया गया है?
- कवि शब्दों में किन तीन तत्वों के न होने की बात करता है?
2. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer)
- कवि ने प्रेम, पीड़ा और प्यास को क्यों नकारा है?
- “स्वप्न नहीं, अश्रु नहीं, हास नहीं” पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करें।
- कविता में देह (अंगों) की सीमाओं को कैसे रेखांकित किया गया है?
- अंतिम पंक्तियों में ‘उस पर’ का संकेत किस ओर है?
3. आलोचनात्मक प्रश्न (Analytical Questions)
- कविता में बार-बार 'नकार' (Negation) का प्रयोग क्यों किया गया है?
- आस्था कविता में कवि किस प्रकार अदृश्य और अव्यक्त सत्य की ओर संकेत करता है?
- इस कविता में ‘भाषा’ और ‘शब्द’ की सीमाओं का क्या उद्घाटन होता है?
- इस कविता को 'आध्यात्मिक अनुभूति' की कविता क्यों कहा जा सकता है?
4. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)
- नेति-नेति पद्धति: कविता 'आस्था' का विश्लेषण करते हुए बताइए कि कवि किस प्रकार 'नेति-नेति' (यह नहीं, वह नहीं) की पद्धति के माध्यम से एक अनिर्दिष्ट सत्य की स्थापना करता है?
- दार्शनिक गहराई: ‘प्राण’, ‘आँखें’, ‘अंग’ और ‘शब्द’ की चार परतों के माध्यम से कवि किस प्रकार अनुभव के पारलौकिक आयाम को प्रकट करता है?
- आधुनिक बोध: कविता की संरचना और शैली किन तत्वों के कारण आधुनिक हिन्दी कविता की पहचान बनती है?
5. संदर्भ सहित व्याख्या (Reference to Context)
निम्नलिखित पंक्तियों का संदर्भ सहित अर्थ स्पष्ट करें:
- a) “जो कुछ प्राणों में है, प्यार नहीं, पीर नहीं, प्यास नहीं।”
- b) “जो कुछ शब्दों में है, अर्थ नहीं, नाद नहीं, श्वास नहीं।”
- c) “उस पर आस्था मेरी। उस पर श्रद्धा मेरी।”
निष्कर्ष (Conclusion)
जगदीश गुप्त की 'आस्था' केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि एक गंभीर दार्शनिक वक्तव्य है। यह कविता हमें सिखाती है कि सत्य वह नहीं है जो सतह पर दिखता है, बल्कि सत्य वह है जो इन सबके परे, आत्मा की गहराइयों में मौन होकर स्थित है।
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| Dr. Jagdish Gupta, pioneer of the 'Nayi Kavita' movement. |
छात्रों के लिए अन्य महत्वपूर्ण संसाधन:
- हिंदी साहित्य: रामदास - रघुवीर सहाय (व्याख्या)
- हिंदी साहित्य: प्रभु! मैं पानी हूँ - केदारनाथ सिंह
- English Literature: Modernism vs Postmodernism (Student Guide)
- Student Finance: Best SIP for Students (₹500 Investment Guide)
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