सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

New !!

मेरे अनकहे अल्फ़ाज़: एक अधूरे प्यार की दिल छूने वाली शायरी | Mere Ankahe Alfaaz - Abhishek Mishra

दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही। Explanation

’दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।

दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही। Explanation

इन पंक्तियों में कवि की वेदना व जीवन संघर्ष साफ झलकता है।

देखा विवाह आमूल नवल,

तुझ पर शुभ पङा कलश का जल।

देखती मुझे तू हँसी मंद,

होठों में बिजली फँसी स्पंद

उर में भर झूली छबि सुंदर

प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर

तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,

विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग

नत नयनों से आलोक उतर

काँपा अधरों पर थर-थर-थर।

देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति

मेरे वसंत की प्रथम गीति –


शृंगार, रहा जो निराकार,

रह कविता में उच्छ्वसित-धार

गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग-

भरता प्राणों में राग-रंग,

रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,

आकाश बदल कर बना माही।

हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन,

कोई थे नहीं, न आमंत्रण

था भेजा गया, विवाह-राग

भर रहा न घर निशि-दिवस जाग,

प्रिय मौन एक संगीत भरा

नव जीवन के स्वर पर उतरा।



माँ की कुल निराश मैंने दी,

पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,

सोचा मन में, ’’वह शकुंतला,

पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।’’

कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,

बैठी नानी की स्नेह-गोद।

मामा-मामी का रहा प्यार,

भर जल्द धरा को ज्यों अपार,

वे ही सुख-दुख में रहे न्यस्त,

तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त,

वह लता वहीं की, जहाँ कली

तू खिली, स्नेह से हिली, पली,

अंत भी उसी गोद में शरण

ली, मूँदे दृग वर महामरण!


मुझ भाग्यहीन की तू संबल

युग वर्ष बाद जब हुई विकल,

दुख ही जीवन की कथा रही

क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!

हो इसी कर्म पर वज्रपाल

यदि धर्म, रहे नत सदा माथ

इस पथ पर, मेरे कार्य सकल

हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!

कन्ये, गत कर्मों का अर्पण

कर, करता मैं तेरा तर्पण!

दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही। Explanation

भावार्थ: –

कवि ’निराला’ की बेटी का नाम सरोज है जिसकी असामयिक मृत्यु हो गई थी। कवि दुखी होकर उसके विवाह के क्षणों को याद करते हुए कहते हैं कि ’’तेरा विवाह बिल्कुल नए रूप में मैंने देखा था। तुझ पर कलश का शुभ्र जल गिराया जा रहा था, तू उस समय मुझे देखती हुई मंद-मंद हँस रही थी। तेरे होठों पर बिजली जैसा कंपन था। तेरे हृदय में प्रियतम की सुंदर छवि झूल रही थी जिसे अभिव्यक्त करना तेरे लिए संभव नहीं था लेकिन वह तेरे शृंगार के माध्यम से अभिव्यक्त हो रहा था। तेरे झुके हुए नेत्रों से प्रकाश फैल रहा था और तेरे होंठ काँप रहे थे। शायद तू कुछ कहना चाहती थी या माँ का अभाव तुझे दर्द दे रहा होगा। तुझे देखकर मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे जीवन के सुखद क्षणों का प्रथम गीत तो तू ही थी।’’

’निराला’ को पुत्री के विवाह के समय उसका शृंगार उनकी पत्नी के निराकार स्वरूप का स्मरण करा रहा था। पत्नी का वह शृंगार ही कविता में अभिव्यक्त हो रहा है। कविता का यह रस मेरे प्राणों में प्रिया के साथ बिताए गए राग-रंगों को भर रहा है। वह अत्यंत सुन्दर रूप मानों आकाश अर्थात् स्वर्गलोक से उतरकर पुत्री के रूप में पृथ्वी पर उतर आया हो। पुत्री का विवाह सम्पन्न हो गया था। कोई आत्मीयजन भी नहीं था क्योंकि किसी को निमंत्रण ही नहीं दिया गया था।


घर में दिन-रात गाए जाने वाले विवाह के गीत भी नहीं गाए गए थे। पुत्री के विवाह की चहल-पहल में कोई दिन-रात नहीं जागा। अत्यंत साधारण तरीके से उसका विवाह सम्पन्न हो गया। एक प्यारा-सा शांत वातावरण था और इस मौन में ही एक संगीत लहरी थी जो एक नवयुगल के नवजीवन में प्रवेश के लिए आवश्यक थी।

कवि अपनी स्वर्गीय पुत्री सरोज को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि तेरी माँ के अभाव में माता द्वारा दी जाने वाली शिक्षा भी मैंने ही दी थी। विवाहोपरांत तेरी पुष्प शैया भी स्वयं मैंने ही सजाई थी। कवि के मन में ख्याल आया कि जिस प्रकार कण्व ऋषि की पुत्री शंकुतला माँ विहीन थी इसी प्रकार मेरी पुत्री सरोज है।


किन्तु उस घटना और इस घटना की स्थिति में अंतर है। शंकुतला की माता उसे स्वयं छोङकर गई थी किन्तु सरोज की माँ को असमय ही मौत ने अपने आगोश में ले लिया था। विवाह के कुछ दिन बाद ही तू खुशी के साथ नानी की प्रेममयी गोद पाने के लिए ननिहाल चली गई थी। वहाँ पर मामा-मामी ने तुझ पर प्यार रूपी जल की अपार वर्षा की थी। तेरे ननिहाल वाले हमेशा तेरे सुख दुःख में निहित रहे। वे हमेशा तेरे हित साधन में लगे रहे। तू वहीं कली के रूप में खिली, स्नेह से वहाँ पली, वहीं की लता बनी और अंतिम समय में तूने मृत्यु का वरण भी वहीं किया था।

कवि निराला भावुक होकर कहते हैं कि हे पुत्री! तू मेरे जैसे भाग्यहीन पिता का एकमात्र सहारा थी। दुख मेरे जीवन की कथा रही है जिसे मैंने अब तक किसी से नहीं कहा, उसे अब आज क्या कहूँ। मुझ पर कितने ही वज्रपात हो अर्थात् कितनी ही भयानक विपत्तियाँ आए, चाहे मेरे समस्त कर्म उसी प्रकार भ्रष्ट हो जाए जैसे सर्दी की अधिकता के कारण कमल पुष्प नष्ट हो जाते हैं लेकिन यदि धर्म मेरे साथ रहा तो मैं विपदाओं को मस्तकक झुकाकर सहज भाव से स्वीकार कर लूँगा। मैं अपने रास्ते से नहीं हटूँगा। कवि अंत में कहता है कि बेटी मैं अपने बीते हुए समस्त शुभ कर्मों को तूझे अर्पित करते हुए तेरा तर्पण करता हूँ अर्थात् मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि मेरे द्वारा किए शुभकर्मों का फल तुझे मिल जाए।

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...