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From Page to Screen: 5 Hindi Classics That Became Cinematic Masterpieces

एक पर्वाज़ दिखाई दी है - Ek Parvaz Dikhai Di Hai | Gulzar Sahab Ghazal

एक पर्वाज़ दिखाई दी है - Ek Parvaz Dikhai Di Hai

Gulzar Sahab Ghazal

एक पर्वाज़ दिखाई दी है 

तेरी आवाज़ सुनाई दी है 

एक पर्वाज़ दिखाई दी है - Ek Parvaz Dikhai Di Hai | Gulzar Sahab Ghazal

सिर्फ़ इक सफ़्हा पलट कर उस ने 

सारी बातों की सफ़ाई दी है 


फिर वहीं लौट के जाना होगा 

यार ने कैसी रिहाई दी है 


जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ 

उस ने सदियों की जुदाई दी है 


ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं 

दिल ने हर चीज़ पराई दी है 


आग में क्या क्या जला है शब भर 

कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है 

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गुलज़ार

एक पर्वाज़ दिखाई दी है - Ek Parvaz Dikhai Di Hai | Gulzar Sahab Ghazal

Gulzar Sahab Ghazal

एक पर्वाज़ दिखाई दी है - Ek Parvaz Dikhai Di Hai | Gulzar Sahab Ghazal

ek parvāz dikhā.ī dī hai 

terī āvāz sunā.ī dī hai 


sirf ik safha palaT kar us ne 

saarī bātoñ kī safā.ī dī hai 


phir vahīñ lauT ke jaanā hogā 

yaar ne kaisī rihā.ī dī hai 

jis kī āñkhoñ meñ kaTī thiiñ sadiyāñ 

us ne sadiyoñ kī judā.ī dī hai 


zindagī par bhī koī zor nahīñ 

dil ne har chiiz parā.ī dī hai 


aag meñ kyā kyā jalā hai shab bhar 

kitnī ḳhush-rang dikhā.ī dī hai 

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Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...

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