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मातृभाषा का महोत्सव - Matribhasha Ka Mahatva | Hindi Diwas Par Kavita

आज सोचा तो आँसू भर आए - Aaj Socha To Aansu Bhar Aaye | Kaifi Azmi - कैफ़ी आज़मी

आज सोचा तो आँसू भर आए - Aaj Socha To Aansu Bhar Aaye  Kaifi Azmi - कैफ़ी आज़मी आज सोचा तो आँसू भर आए मुद्दतें हो गईं मुस्कुराए हर क़दम पर उधर मुड़ के देखा उन की महफ़िल से हम उठ तो आए रह गई ज़िंदगी दर्द बन के दर्द दिल में छुपाए छुपाए दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं याद इतना भी कोई न आए - Kaifi Azmi - कैफ़ी आज़मी झुकी झुकी सी नज़र - Jhuki Jhuki Si Nazar तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो - Tum Itna Jo Muskura Rahe Ho

Meri Raaton Ka Khasaara Nahi Hone Wala - मेरी रातों का ख़सारा नहीं होने वाला By HIMANSHI BABRA | हिमांशी बाबरा

Meri Raaton Ka Khasaara Nahi Hone Wala -  मेरी रातों का ख़सारा नहीं होने वाला By Himanshi Babra हिमांशी बाबरा  Ki Ghazal दिल की बस्ती में उजाला नहीं होने वाला मेरी रातों का ख़सारा नहीं होने वाला मैं ने उल्फ़त में मुनाफ़े' को नहीं सोचा है मेरा नुक़्सान ज़ियादा नहीं होने वाला उस से कहना कि मिरा साथ निभाए आ कर मेरा यादों से गुज़ारा नहीं होने वाला वो हमारा है हमारा है हमारा है फ़क़त बावजूद इस के हमारा नहीं होने वाला आज उट्ठा है मदारी का जनाज़ा लोगो कल से बस्ती में तमाशा नहीं होने वाला - HIMANSHI BABRA  |  हिमांशी बाबरा ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में - Zulfein Safed Hogyi Unnees Saal Mein मेरे अपने मुझे ग़ैरों की तरह देखते हैं - Mere Apne Mujhe Gairon Ki Tarag Dekhte Hain

ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में - Zulfein Safed Hogyi Unnees Saal Mein | हिमांशी बाबरा

ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में - Zulfein Safed Hogyi Unnees Saal Mein HIMANSHI BABRA |  हिमांशी बाबरा   दिल ऐसे मुब्तला हुआ तेरे मलाल में " ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में " ऐसे वो रो रहा था मिरा हाल देख कर आया हुआ हो जैसे किसी इंतिक़ाल में ये बात जानती हूँ मगर मानती नहीं दिन कट रहे हैं आज भी तेरे ख़याल में इक बार मुझ को अपनी निगहबानी सौंप दे ' उम्रें गुज़ार दूँगी तिरी देख-भाल में ' वो तो सवाल पूछ के आगे निकल गया अटकी हुई हूँ मैं मगर उस के सवाल में -- HIMANSHI BABRA |  हिमांशी बाबरा My heart so deeply immersed in your regret, My hair turned white in just nineteen years, upset. He wept, seeing the state I was in, As though he had come from a place of death within. I know this truth, but I won't accept it, Still, my days pass in thoughts of you, unfit. Just once, entrust me with your care, I’ll spend my life looking after you, always there. He asked a question and moved ahead, I’m stuck, caught in his question instead.

Ye Baar-E-Gham Bhi Uthaya Nahi - ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से | Azhar Iqbal Ghazal

Ye Baar-E-Gham Bhi Uthaya Nahi - ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से Azhar Iqbal Ghazal ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से कि उस ने हम को रुलाया नहीं बहुत दिन से चलो कि ख़ाक उड़ाएँ चलो शराब पिएँ किसी का हिज्र मनाया नहीं बहुत दिन से ये कैफ़ियत है मेरी जान अब तुझे खो कर कि हम ने ख़ुद को भी पाया नहीं बहुत दिन से हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है किसी ने हम को जगाया नहीं बहुत दिन से ये ख़ौफ़ है कि रगों में लहू न जम जाए तुम्हें गले से लगाया नहीं बहुत दिन से  - अज़हर इक़बाल

Gopaldas Neeraj Ki Shayariyan - गोपालदास नीरज की शायरियां | Hindi Shayari - हिंदी शायरी

Gopaldas Neeraj Ki Shayariyan - गोपालदास नीरज की शायरियां Hindi Shayari - हिंदी शायरी   (1) मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार (2) भारत माँ के नयन दो हिन्दू-मुस्लिम जान नहीं एक के बिना हो दूजे की पहचान (3) बिना दबाये रस न दें ज्यों नींबू और आम दबे बिना पूरे न हों त्यों सरकारी काम (4) अमरीका में मिल गया जब से उन्हें प्रवेश उनको भाता है नहीं अपना भारत देश (5) जब तक कुर्सी जमे खालू और दुखराम तब तक भ्रष्टाचार को कैसे मिले विराम (6) पहले चारा चर गये अब खायेंगे देश कुर्सी पर डाकू जमे धर नेता का भेष (7) कवियों की और चोर की गति है एक समान दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान (8) गो मैं हूँ मँझधार में आज बिना पतवार लेकिन कितनों को किया मैंने सागर पार (9) जब हो चारों ही तरफ घोर घना अँधियार ऐसे में खद्योत भी पाते हैं सत्कार (10) जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल (11) भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म (12) दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन (13) गागर में सागर भर...

ये एक बात समझने में रात हो गई है - Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai | तहज़ीब हाफ़ी हिंदी कवितायेँ

ये एक बात समझने में रात हो गई है  Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai तहज़ीब हाफ़ी  हिंदी कवितायेँ ये एक बात समझने में रात हो गई है  मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है  मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा  मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है  बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूँगा सोचा था  तिरी जुदाई ही वज्ह-ए-नशात हो गई है  बदन में एक तरफ़ दिन तुलूअ' मैं ने किया  बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है  मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर  ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है  रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र  मैं नज़्म लिखने लगा था कि ना'त हो गई है ये एक बात समझने में रात हो गई है  Ye Ek Baat Samajhne Me Raat Ho Gyi Hai तहज़ीब हाफ़ी  हिंदी कवितायेँ

बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता - Bata E Abr Musavat Kyun Nahi | Tehzeeb Hafi Shayari

बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता -  Bata E Abr Musavat Kyun Nahi Tehzeeb Hafi Shayari बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता  हमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता  महाज़-ए-इश्क़ से कब कौन बच के निकला है  तू बच गया है तो ख़ैरात क्यूँ नहीं करता  वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं  वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता  मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ  वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता  मुझे तू जान से बढ़ कर अज़ीज़ हो गया है  तो मेरे साथ कोई हाथ क्यूँ नहीं करता Batā Ai Abr Musāvāt Kyuuñ Nahīñ Kartā  Hamāre Gaañv Meñ Barsāt Kyuuñ Nahīñ Kartā  Mahāz-e-ishq Se Kab Kaun Bach Ke Niklā Hai  Tū Bach Gayā Hai To ḳHairāt Kyuuñ Nahīñ Kartā  Vo Jis Kī Chhāñv Meñ Pachchīs Saal Guzre Haiñ  Vo Peḍ Mujh Se Koī Baat Kyuuñ Nahīñ Kartā  Maiñ Jis Ke Saath Ka.ī Din Guzār Aayā Huuñ  Vo Mere Saath Basar Raat Kyuuñ Nahīñ Kartā  Mujhe Tū Jaan Se Baḍh Kar Aziiz Ho Gayā Hai  To Mere Saath Koī Haath Kyuuñ N...

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा - Parai Aag Pe Roti Nahi Banaunga | Tehzeeb Hafi Urdu Ghazal

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा - Parai Aag Pe Roti Nahi Banaunga Tehzeeb Hafi Urdu Ghazal पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा  मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा  अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया  अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा  फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन  मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा  गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ  नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊँगा  मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊँ  तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊँगा  तुम्हें पता तो चले बे-ज़बान चीज़ का दुख  मैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा  मैं एक फ़िल्म बनाऊँगा अपने ' सरवत ' पर  और इस में रेल की पटरी नहीं बनाऊँगा  पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा - Parai Aag Pe Roti Nahi Banaunga Tehzeeb Hafi Urdu Ghazal Parai Aag Pe Rotī Nahīñ Banāūñgā  Maiñ Bhiig Jā.ūñgā Chhatrī Nahīñ Banā.ūñgā  Agar ḳHudā Ne Banāne Kā Iḳhtiyār Diyā  Alam Banā.ūñgā Barchhī Nahīñ Banā.ūñgā  Fareb De Ke Tirā Jism Jiit Luuñ Lekin  Maiñ Peḍ Kaat Ke Kashtī ...

उधार (Udhaar) - अज्ञेय की हिंदी कविता | Ageya Hindi Poems

उधार (Udhaar) Ageya Hindi Poems अज्ञेय की हिंदी कविता सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी। उधार (Udhaar)- अज्ञेय की हिंदी कविता | Ageya Hindi Poems मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी? मैनें घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी— तिनके की नोक-भर? शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी— किरण की ओक-भर ? मैने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास, लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास। मैने आकाश से मांगी आँख की झपकी-भर असीमता—उधार। सब से उधार मांगा, सब ने दिया । यों मैं जिया और जीता हूँ क्योंकि यही सब तो है जीवन— गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला, गन्धवाही मुक्त खुलापन, लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह, और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का: ये सब उधार पाये हुए द्रव्य । उधार (Udhaar)- अज्ञेय की हिंदी कविता | Ageya Hindi Poems रात के अकेले अन्धकार में सामने से जागा जिस में एक अनदेखे अरूप ने पुकार कर मुझ से पूछा था: " क्यों जी , तुम्हारे इस जीवन के इतने विविध अनुभव हैं इतने तुम धनी हो, तो मुझे थोड़ा प्यार दोगे —उधार—जिसे मैं सौ-गुने ...

Man Me Itni Mayusi | मन में इतनी मायूसी - Emotional Poems In Hindi | Harsh Nath Jha

मन में इतनी मायूसी Sad Poems In Hindi Sad Shayari In Hindi Emotional Poems In Hindi Emotional Hindi Poems मन में इतनी मायूसी पहली बार हुई है ख़ुद में ख़ुद की कमी ऐसी पहली बार हुई है ऐसे आँसू , ऐसी ख़ुशी पहली बार हुई है महफ़िल में ख़ामोशी पहली बार हुई है | महफ़िल में ख़ामोशी पहली बार हुई है मन में इतनी मायूसी पहली बार हुई है शब्दों के पीछे तंज समझने मैं अब लगा हूँ शब्दों की कमी ऐसी पहली बार हुई है | जिनको मैंने जाना था वो सब दूर हुए हैं जिनसे दिल लगाया था सब मजबूर हुए हैं जिनसे लोरी सुनते थे जिनकी गोद में सोए हैं जिनको मैंने जाना था जिनके लिए रोये हैं | आँसू है, आँखों में मुँह से शब्द कैसे हैं साथ हैं सब लेकिन साथी न अब वैसे हैं ये झूठी मुस्कुराहटें लगती कितनी सच्ची हैं मन में बसी वो यादें पुरानी लगती कितनी अच्छी है | कैसे तोड़ दे रिश्ता दिल का जो सजाया था ? आशियाना सपनों का मन में जो बसाया था जेबें न अब खाली है पैसा बहुत कमाया है ये कैसी है खुशियाँ जिन्होंने बहुत रुलाया है ? ये ख़ामोशी पहले जो बहुत अधूरी लगती थी हर महफ़िल , हर पंक्ति बहुत ज़रूरी लगती थी अब आँखें वे दिखाते हैं जिन्होंने सिर झुक...

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...