Shoaib Kiani Nazm 'Be-Haya': A Satire on Patriarchy (Lyrics & Meaning)
क्या 'बे-हया' (Be-Haya) होना एक गाली है, या पितृसत्तात्मक समाज के मुंह पर एक तमाचा? शोएब कियानी (Shoaib Kiani) की यह नज़्म सिर्फ़ शब्दों का जमावड़ा नहीं, बल्कि उस दोगलेपन का आईना है जो औरतों को 'देवी' भी कहता है और अपनी 'जागीर' भी समझता है।
आज Sahityashala पर हम पेश कर रहे हैं शोएब कियानी की वह नज़्म जिसने सोशल मीडिया और साहित्य जगत में तहलका मचा दिया है। यह नज़्म उस "मालिक" वाली सोच पर कटाक्ष (Satire) करती है जो तय करता है कि एक औरत कैसे जियेगी।
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| "Ham unke maalik hain?" - This artwork visualizes the burden of tradition and ownership that the nazm critiques. |
नज़्म का मर्म (The Context of the Poem)
इस नज़्म में शायर ने खुद को "हम" (समाज के ठेकेदार/पुरुषवादी सोच) के रूप में पेश किया है। यह एक सैटायर (व्यंग्य) है। जब शायर कहता है "हमीं तो हैं वो जो तय करेंगे", तो वह दरअसल यह दिखा रहा है कि यह सोच कितनी क्रूर और हास्यास्पद है। यह उसी तरह का विद्रोह है जैसा हमें रमाशंकर यादव 'विद्रोही' की कविताओं में देखने को मिलता है।
Shoaib Kiani Nazm 'Be-Haya' Lyrics in Hindi
यहाँ पढ़िए नज़्म का हिंदी पाठ (Devanagari):
बे-हया
हमीं तो हैं वो
जो तय करेंगे
कि उनके जिस्मों पे किसका हक़ है
हमीं तो हैं वो
जो तय करेंगे
कि किस से उनके निकाह होंगे
ये किसके बिस्तर की ज़ीनतें हैं
वो कौन होगा जो अपने होंठों को
उनके जिस्मों की आब देगा
भले मोहब्बत किसी के कहने पे
आज तक हो सकी, न होगी
मगर ये हम तय करेंगे
उनको किसे बसाना है अपने दिल में
हम उनके मालिक हैं
जब भी चाहें
उन्हें लिहाफ़ों में खींच लाएं
और उनकी रूहों में दांत गाड़ें
ये मां बनेंगी
तो हम बताएंगे
उनके जिस्मों ने कितने बच्चों को ढालना है
हमारे बच्चों के पेट भरने
अगर ये कोठे पे जा के अपना बदन भी बेचें
तो हम बताएंगे
किसको कितने में कितना बेचें
हमीं को हक़ है
कि उनके गाहक (जो ख़ुद हमीं हैं) से
सारी क़ीमत वसूल कर लें
हमीं को हक़ है कि उनकी आंखें,
हसीन चेहरे, शफ़्फ़ाफ़ पांव,
सफ़ेद रानें, दराज़ ज़ुल्फ़ें
और आतिशीं लब दिखा-दिखा कर
क्रीम, साबुन, सफ़ेद कपड़े, और आम बेचें
दुकान चलाएं, नफ़ा कमाएं
हमीं तो हैं जो ये तय करेंगे
ये किस सहीफ़े की कौन सी आयतें पढ़ेंगी
ये कौन होती हैं
अपनी मर्ज़ी का रंग पहनें
स्कूल जाएं, हमें पढ़ाएं
हमें बताएं
कि इनका रब भी वही है जिसने हमें बनाया
बराबरी के सबक़ सिखाएं
ये लौंडियां हैं हमारे पैरों की जूतियां हैं
ये कौन होती हैं अपनी मर्ज़ी से जीने वाली?
बताने वाले हमें यही तो बता गए हैं
जो हुक्मरानों की बात टालें
जो अपने भाई से हिस्सा मांगें
जो शौहरों को ख़ुदा न समझें
जो क़द्रे मुश्किल सवाल पूछें
जो अपनी मेहनत का बदला मांगें
जो आजिरों से ज़बां लड़ाएं
जो अपने जिस्मों पे हक़ जताएं
वो बे-हया हैं।
~ शोएब कियानी
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| The definition of "Be-Haya" (Shameless) has often been used to silence women who defy authority throughout history. |
Be-Haya Nazm in Urdu (Shoaib Kiani)
अदब के शौक़ीनों के लिए, यह नज़्म अपने मूल उर्दू रूप में:
"بے حیا"
ہمیں تو ہیں وہ
جو طے کریں گے
کہ ان کے جسموں پہ کس کا حق ہے
ہمیں تو ہیں وہ
جو طے کریں گے
کہ کس سے ان کے نکاح ہوں گے
یہ کس کے بستر کی زینتیں ہیں
وہ کون ہو گا جو اپنے ہونٹوں کو
ان کے جسموں کی آب دے گا
بھلے محبت کسی کے کہنے پہ
آج تک ہو سکی، نہ ہو گی
مگر یہ ہم طے کریں گے
ان کو کسے بسانا ہے اپنے دل میں
ہم ان کے مالک ہیں
جب بھی چاہیں
انہیں لحافوں میں کھینچ لائیں
اور ان کی روحوں میں دانت گاڑیں
یہ ماں بنیں گی
تو ہم بتائیں گے
ان کے جسموں نے کتنے بچوں کو ڈھالنا ہے
ہمارے بچوں کے پیٹ بھرنے
اگر یہ کوٹھے پہ جا کے اپنا بدن بھی بیچیں
تو ہم بتائیں گے
کس کو کتنے میں کتنا بیچیں
ہمیں کو حق ہے
کہ ان کے گاہک (جو خود ہمیں ہیں) سے
ساری قیمت وصول کر لیں
ہمیں کو حق ہے کہ ان کی آنکھیں،
حسین چہرے، شفاف پاؤں،
سفید رانیں، دراز زلفیں
اور آتشیں لب دکھا دکھا کر
کریم، صابن، سفید کپڑے، اور آم بیچیں
دکاں چلائیں، نفع کمائیں
ہمیں تو ہیں جو یہ طے کریں گے
یہ کس صحیفے کی کون سی آیتیں پڑھیں گی
یہ کون ہوتی ہیں
اپنی مرضی کا رنگ پہنیں
سکول جائیں، ہمیں پڑھائیں
ہمیں بتائیں
کہ ان کا رب بھی وہی ہے جس نے ہمیں بنایا
برابری کے سبق سکھائیں
یہ لونڈیاں ہیں ہمارے پیروں کی جوتیاں ہیں
یہ کون ہوتی ہیں اپنی مرضی سےجینے والی؟
بتانے والے ہمیں یہی تو بتا گئے ہیں
جو حکمرانوں کی بات ٹالیں
جو اپنے بھائی سے حصہ مانگیں
جو شوہروں کو خدا نہ سمجھیں
جو قدرے مشکل سوال پوچھیں
جو اپنی محنت کا بدلہ مانگیں
جو آجروں سے زباں لڑائیں
جو اپنے جسموں پہ حق جتائیں
وہ بے حیا ہیں
~ شعیب کیانی
Deep Analysis: The Mirror of Society
इस नज़्म की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती यह है कि यह 'पुरुष' के नज़रिए से लिखी गई है, लेकिन बेनक़ाब उसी पुरुष को करती है।
- बाज़ारवाद और औरत: शायर लिखता है "क्रीम, साबुन, सफ़ेद कपड़े, और आम बेचें"। यहाँ दिखाया गया है कि कैसे समाज एक तरफ तो औरत को 'पर्दे' में रखना चाहता है, लेकिन मुनाफ़ा कमाने के लिए उसी औरत के जिस्म की नुमाइश भी करता है। यह पूँजीवाद का वो चेहरा है जो बागी शायरी में अक्सर उठाया जाता है।
- धर्म और पितृसत्ता: "ये किस सहीफ़े की कौन सी आयतें पढ़ेंगी" - यह पंक्ति बताती है कि धर्म की व्याख्या भी पुरुष अपनी सुविधा अनुसार करता है। केदारनाथ सिंह की कविता 'प्रभु! मैं पानी हूँ' की तरह, यहाँ भी अस्तित्व की लड़ाई है।
- बे-हया की परिभाषा: अंत में, शायर 'बे-हया' की नई परिभाषा गढ़ता है। जो अपने हक़ के लिए बोले, जो "भाई से हिस्सा मांगे" - समाज की नज़र में वही औरत बदचलन है।
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| Shoaib Kiani, whose satirical verses expose the hypocrisy of societal "guardians" of women. |
Be-Haya Poem in Hinglish (Roman Urdu)
For our readers comfortable with Roman script:
...Jo hukmraano ki baat taalein
Jo apne bhai se hissa mangein
Jo shauharon ko khuda na samjhein...
Woh be-haya hain.
(Read full Hinglish lyrics in the section above or download PDF)
निष्कर्ष (Conclusion)
शोएब कियानी की 'बे-हया' सिर्फ़ एक नज़्म नहीं, बल्कि एक दस्तावेज़ है हमारे समय का। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम भी उसी भीड़ का हिस्सा हैं जो सवाल पूछने वाली औरत को 'बेहया' कहती है? साहित्यशाला पर हम ऐसी ही Inqilabi Poetry लाते रहेंगे।
आप शोएब कियानी को उनके Official YouTube Channel पर सुन सकते हैं।
Frequently Asked Questions (FAQ)
Q: 'बे-हया' नज़्म किसने लिखी है? (Who wrote Be-Haya Nazm?)
Q: इस नज़्म का मुख्य सन्देश क्या है?
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