फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में - Fir Banegi Masjidein Maykhane Tere Shehar Mein
Kaifi Azmi - कैफ़ी आज़मी
लाई फिर इक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना तेरे शहर में
फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में
आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में
जुर्म है तेरी गली से सर झुका कर लौटना
कुफ़्र है पथराव से घबराना तेरे शहर में
शाह-नामे लिक्खे हैं खंडरात की हर ईंट पर
हर जगह है दफ़्न इक अफ़्साना तेरे शहर में
कुछ कनीज़ें जो हरीम-ए-नाज़ में हैं बारयाब
माँगती हैं जान-ओ-दिल नज़राना तेरे शहर में
नंगी सड़कों पर भटक कर देख जब मरती है रात
रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में