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मेरे अनकहे अल्फ़ाज़: एक अधूरे प्यार की दिल छूने वाली शायरी | Mere Ankahe Alfaaz - Abhishek Mishra

फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में - Fir Banegi Masjidein Maykhane Tere Shehar Mein

फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में - Fir Banegi Masjidein Maykhane Tere Shehar Mein

 Kaifi Azmi - कैफ़ी आज़मी

लाई फिर इक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना तेरे शहर में

फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में

फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में - Fir Banegi Masjidein Maykhane Tere Shehar Mein

आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ

आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में


जुर्म है तेरी गली से सर झुका कर लौटना

कुफ़्र है पथराव से घबराना तेरे शहर में


शाह-नामे लिक्खे हैं खंडरात की हर ईंट पर

हर जगह है दफ़्न इक अफ़्साना तेरे शहर में

फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में - Fir Banegi Masjidein Maykhane Tere Shehar Mein

कुछ कनीज़ें जो हरीम-ए-नाज़ में हैं बारयाब

माँगती हैं जान-ओ-दिल नज़राना तेरे शहर में


नंगी सड़कों पर भटक कर देख जब मरती है रात

रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में

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सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

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सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

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